पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/६३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बुद्ध और बौद्ध-धर्म ६. उत्तर दे देता था तो उसको दीक्षा दी जाती थी । जब कोई व्यक्ति प्रव्रज्या लेने के लिए आचार्य के पास आता तो एक भिक्षु दस भिक्षुओं के सामने जाकर कहता कि अमुक व्यक्ति भिक्षु बनना चाहता है, अगर संघ आज्ञा दे तो वह उपस्थित किया जाय। संघ के आज्ञा देते ही तुरन्त ही वह सङ्घके सामने उपस्थित होता और वह हाथ जोड़कर कहता कि मेरो इस पापपूर्ण संसार से उद्धार कीजिए । तब एक विद्वान् भिक्ष-संघ की आज्ञा लेकर उससे कुछ प्रश्न पूछता । इन प्रश्नों का यह अभिप्राय होता था कि वह कोई भिक्ष होने का अनधिकारी तो सिद्ध नहीं होता । इसका सन्तोष- जनक उत्तर देने पर संघ उसे आज्ञा दे देता था और वह आचार्य के पास सब संस्कार करके संघ में शामिल कर लिया जाता था; परन्तु दो-एक प्रकार के व्यक्ति संघ में एकाएक भर्ती नहीं किये जाते थे--एक तो वह कि जो अन्य धर्म को छोड़कर आया हो । जो अन्य धर्म को छोड़कर संघ में भर्ती होने आता था उसे चार महीने तक ऐसे ही संघ में रखा जाता था। अगर वह चार महीने में संघ को सन्तुष्ट न कर सकता था तो उसका फिर संस्कार नहीं हो सकता था। १५ वर्ष से अधिक किन्तु २० वर्ष से कम उम्रवाला व्यक्ति प्रव्रज्या ग्रहण कर सकता था; परन्तु उपसम्पदा संस्कार के लिए उसे २० वर्ष की उम्र तक रहना पड़ता था। इस बीच में उसे अपने आचार्य के आधीन रहना पड़ता था । इस अवस्था में वह श्रमण कहलाता था । उससे यम और नियमों का पालन कराया जाता था। जिन्हें बौद्ध साहित्य में १०