सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बौद्ध-संघ mote , पुण्य का काम समझते थे। हर शरद-ऋतु में बौद्ध-भिक्षुओं को वस्न बाँटे जाते थे। भिक्षु तीन वरोंके अतिरिक्त एक भिक्षा-पात्र, एक अंगोछा, एक कर्धनी और एक उस्तरा रखते थे। हर पन्द्रहवें दिन भिक्षु लोग परस्पर एक-दूसरे का मुण्डन कर देते थे । वर्षा- ऋतु उन्हें एक ही जगह व्यतीत करनी पड़ती थी। उसे चातुर्मास कहते थे। यह चातुर्मास आषाढ़ की पूर्णिमा से कार्तिक की पूर्णिमा तक माना जाता था। चातुर्मासमें भिक्षुओं को पाँच प्रकारके स्थानों में रहने की आज्ञा थी। बोहर, अड्ढ योग, प्रासाद, हर्म्य और गुहा । बोहर एक मठ ही का नाम न था, बल्कि वह एक पूजा का स्थान था और आगे बढ़कर वह संघाराम की शक्ल में बढ़ गया था । गुहा पहाड़में पत्थर को खोदकर बनाई जाती है, ऐसी बहुत- सी गुफाएं गया के पास और नागार्जुन की पहाड़ियों में पाई जाती हैं । अशोक ने ऐसी अनेकों गुफाएं खुदवाई थीं। लंका के महेन्द्र- पर्वत पर भी बहुत-सी गुफाएं बौद्धों की हैं। भिन्तु अपनी आजीविका म्वयं उपार्जन करते थे। उनकी आजीविका भिक्षा थी, किन्तु भिक्षा माँगते समय वह मौन रहते थे। बीमारी के समय ही भिक्ष मक्खन, मिश्री, गुड़, शक्कर, तेल आदि काम में ला सकते थे। जबतक बुद्ध जीवित रहे, तबतक उनकी आज्ञा और शब्द ही संघके लिए कानून थे, किन्तु संघकी शक्तियाँ इस कदर बढ़ रही थीं कि उसका शासन और संरक्षण एक आदमी के लिए कठिन होगया था। धीरे-धीरे प्रबन्ध की एक स्थायी व्यवस्था बंध गई । इस ,