में कर लिया । यह चन्द्रगुप्त शूद्रा के गर्भ से पैदा हुआ था, इसलिए उच्च-जाति के लोग इस राजा को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखते थे । यद्यपि चन्द्रगुप्त और उसका पुत्र विन्दुसार बौद्ध नहीं हुए, लेकिन बिन्दुसार का उत्तराधिकारी महाप्रतापी अशोक ईसा के २६० वर्ष पहले जब मगध की गद्दी पर बैठा, तब उसनं बौद्ध- धर्म को ग्रहण किया और वह बौद्ध-धर्म का भारतवर्ष और भारतवर्ष के बाहर बड़ा भारी प्रचारक हुआ । अशोक का नाम बोलगा नदी से लेकर जापान तक और साइबेरिया से लेकर लंका तक विख्यात होगया। अशोक का राज्य समस्त उत्तर भारत में हो गया था। उसके शिलालेख पंजाब, बिहार, आसाम में अब भी पाये जाते हैं। ईसा के २४२ वर्ष पूर्व अपने राज्य के अठारहवें वर्ष में उसनं तीसरी सभा की और यह सभा ६ मास तक होती रही। और इसमें भौगलिक पुत्र तिष्य ने एक हजार भिक्षुओं को एकत्रित किया । एक हजार भिक्षुओं ने सम्मिलित होकर बुद्ध के पवित्र पाठ का उच्चारण किया और दोहराया।
आगे चलकर महासांधिक सम्प्रदाय के है और स्थविर सम्प्र- दाय के ११ भेद पड़े। ये बीसों ही सम्प्रदाय हीनयान के नाम से प्रसिद्ध हैं। स्थविर के पृष्टपोशक काश्मीर के राजा कनिष्क हुए। इसने बौद्ध-धर्म की बड़ी भारी सभा की थी और बहुत-से ग्रन्थों का संग्रह किया व बहुत-से नये ग्रन्थ भी लिखवाये । इन सब सम्प्रदायों में मुख्य सम्प्रदाय सर्वास्तित्ववाद है। इस सम्प्रदाय के अनेकों ग्रन्थ बौद्ध साहित्य में उपलब्ध हुए । इन लोगों ने सब