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पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/९१

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बुद्ध और बौद्ध धर्म CC तीसरा पुट-दो सत्यों का दूसरा पुट संवृत्त सत्य है,न असत्ता और न अशून्यता परमार्थ सत्य है। चौथा पुट-दो सत्यों का तीसरा पुट संवृत्त सत्य है, न सत्ता और न शून्यता परमार्थ सत्य है। जवतक हम सत्ता या असत्ता भाव या अभाव के पीछे इस प्रकार लगे रहेंगे, तो हमें कभी भी परमार्थ सत्य का अनुभव न होगा और न हमें केवल्यावस्था का ही प्राप्ति होगी। नेति नेति वाक्यों द्वारा वेदान्त-शास्त्र में भी ब्रह्म-तत्व के समझने की चेष्टा की गई है, पर परमार्थ सत्य क्या है इसका ठीक उत्तर केवल मौन ही है। जहाँ मन और वचन की गति ही नहीं वहाँ का वर्णन कैसे हो सकता है ! पूर्वोक्त चारों पुटों में प्रत्येक पुटके दो सत्य सम्पूर्ण प्रकारके अन्तिम विचारों के खण्डन करने के लिये माध्यमिक-मार्ग बताते हैं। आचार्य नागार्जुन की एक प्रसिद्ध कारिका जिसमें कि आठ नकार हैं, माध्यमिक-मार्ग का प्रतिपादन करती है। और अत्यन्त विचारों को मानने से रोकती है। वह यह हैं- अनिरोधम् अनुत्पादम्, अनुच्छेदम् अशाश्वतम् । अनेकार्थम् अनानार्थम्, अनागमम् अनिर्गमम् ।। इसका अर्थ यह है-न नाश, न उत्पत्ति, न विध्वंस, न नित्यता, न एकार्थ, न नानार्थ, न आगमन, न गमनः। माध्यमिकों की दृष्टि से सब प्रकार के अत्यन्त विचार इन आठ नकारों से खण्डित किये जा सकते हैं। ।