'६५ बौद्धों के धर्म-स साम्राज्य का विस्तार इस अशोक का नाम यूरोप की वालंगा नदी से जापान तक, और साइवेरिया से लंका तक फैला हुआ था । पण्डित कोपेन के मत से भारत का अशोक यूरोप के सीजर और शार्लमन से बहुत अधिक प्रतापी और प्रसिद्ध है। ईसा की सातवीं शताब्दि में चौद्ध महाराज हर्षवर्धन और शिलादित्य ने कान्यकुंज के सिंहासन से समस्त आर्यावर्त का शासन किया था। ये पाँचवें वर्ष बौद्धों का धर्म-उत्सव करते थे, और अत्यन्त दान देते थे। अगले अध्यायों में हम विस्तार से वुद्ध और उनके धर्म का परिचय देंगे। सम्राट अशोक के समय में, बौद्ध-श्रवों के जत्थे केन्चत्थे सीरिया, श्याम, मिस्र, मकदूनिया और एपीरस तक पहुँचे थे, और भगवान् बुद्ध के महत्व को स्थापित किया था। उस समय इन देशों में यूनान का आधिपत्य था; पर इन साधुओं का प्रभाव इतना प्रवल या कि कुशान-सम्राट् कनिष्क भी बौद्ध होगया। यह कोई साधारण राजा न था, राजराजेश्वर था, और उसका प्रभाव चीन तक था । इन धर्म-भिनुओं और बौद्ध-धर्म के साथ-साथ भारतीय चित्रकला, मूर्ति निर्माण-विद्या और संगीत भी मध्य- एशिया की राह चीन और जापान तक पहुंचे। महान् बुद्ध ने अपने जीवन-काल ही में अपने धर्मके विस्तार का काम प्रारम्भ कर दिया था; परन्तु वह वास्तव में विहार और काशी के आस-पास ही जीवन के अन्त तक घूमता रहा। विदेश में बौद्ध-धर्म का प्रचार सबसे प्रथम सम्राट अशोक ने
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