बुद्ध और बौद्ध धर्म १४ की अट्टालिकाएँ गगन भेदिनी थीं । एक महल १६०० फीट लम्बा और ४०० फीट चौड़ा था। उसमें छात्र और अध्यापक रहते थे। पटना के पास उसका ध्वंसावशेप है। असंख्य बौद्ध- मन्दिर के खण्डहर वहाँ पड़े हैं। वहाँ पर कई-एक बड़े-बड़े जलाशय थे,जिनमें से दो-एक तो कई-एक मील लम्बे थे । यहाँ १०००० चौद्धअध्यापक और छात्र राज्य की ओर से भोजन पाकर, दिन-रात अध्ययन- अध्यापन करते थे । भाग्यवान् चीनी यात्री हुएनसाँग ने इस यशस्वी नालन्द-विहार को देखा था। वह लिखता है-"नालन्द के बौद्ध-तपस्वी महापण्डित हैं। समग्र भारतवर्ष उनका सम्मान करता है और उनका आदेश सिर झुकाकर स्वीकार करता है। बिहारों को बनाकर इस बड़े सम्राट् ने केवल मनुष्यों को ही ज्ञान वितरण नहीं किया था,प्रत्युत अनेक चिकित्सालय भी पशुओं और मनुष्यों के लिए बनाये थे, जहाँ बिना मूल्य औषधि वितरण होती थी। हज़ारों मील की सड़कें बनवाकर, उनपर वृक्ष लगवाये थे। कुएँ खुदवाये थे और सरायें बनवाई थीं। उस अमर सम्राट के धर्म- स्तम्भ आज भी ऊँचा मस्तक किये खड़े हैं । इनपर लिखा है- "अविराम न्यायपूर्वक विचार करने से बढ़कर सर्व-साधारण के मंगल को मूल और कुछ नहीं है। उसी विचार को प्रजा-पुंज में वितरण करना मेरा लक्ष्य है। दूसरे पर लिखा है-"मेरी एकान्त वासना है कि मनुष्य चाहे किसी मत का अनुयायी हो, चरित्र की उन्नति का साधन करना चाहिए, सभी को एक-दूसरे की श्रद्धा करनी चाहिए । मत पार्थक्य से हिंसा,विद्वेष न होनी चाहिए।"
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