१२० वृहदारण्यकोपनिषद् स० उदान वह वायु है जो पैर से लेकर मस्तक तक चला करता है, समान वह वायु है जो ग्वाये हुये अन्न को पचाता है, और इन्हीं सबके साथ यह जीवात्मा एतन्मय है यानी यही वाणीमय है, यही मनोमय है, यही प्राणमय है ॥ ३ ॥ मन्त्रः ४ त्रयो लोका एतएव वागेवायं लोको मनोऽन्तरिन. लोकः पाणोऽसौ लोकः ॥ पदच्छेदः। त्रयः, लोकाः, एते, एव, वाग्, एव, भयम्, लोकः, मनः, अन्तरिक्षलोकः, प्राणः, असी, लोकः ।। अन्वय-पदार्थ । एते एवम्ये ही मन, वाणी,माण । त्रयः तीन लोकालोक यानी भूः, भुवः, स्वः । + सन्ति हैं। + तत्र-तिनमें । वाम् वाणी । एव-निश्चय करके । श्रयम्-यह । लोक-धीलोक है। मनः मन । अन्तरिक्षलोकायान्तरित लोक है।+ च% और । प्राणान्माण हो । असोबह । लोकायुलोक है। भावार्थ । हे सौम्य ! यही तीन यानी वाणी, मन और प्राण तीन लोक भूः भुवः स्वः हैं, तिनमें से वाणी निश्चय करके यह पृथ्वीलोक है, मन अन्तरिक्षलोक है, और प्राण द्युलोक है ॥ ४॥ मन्त्रः ५ त्रयो वेदा एतएव वागेवग्वेदो मनो यजुर्वेदः प्राणः सामवेदः ॥ -
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