पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/१७०

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१५४ बृहदारण्यकोपनिषद् स० उत्तिष्ठन्ति-उत्पन्न होते हैं। एतत् यही । एपाम् इन नामों की। साम-समता है। एतत् हि-यही सर्वःसव । नामभि: नामों की । समम्-बराबरी है। एतत्-यह । एपाम् इनका । ब्रह्म-ग्रह है। एतद् हिम्यही । सर्वाणिसयानामानि-नामों को। विभर्ति-धारण करता है। भावार्थ। ये तीन नाम, रूप और कर्म है, इनमें से नामों का वाणीही उपादान कारण है, क्योंकि वाणी ही से सब नाम कहे जाते हैं, यह वाणी ही इन सब नामों की समतारूप है, यही सब नामों की समानता है, यही इनका ब्रह्म है, क्योंकि यह वाणी ही सब नामों को धारण करती है विना वाणी के नामों का उच्चारण नहीं हो सका है।। १ ।। मन्त्रः २ अथ रूपाणां चक्षुरित्येतदेपामुक्थमतो हि सर्वाणि रूपाएयुत्तिष्ठन्त्येतदेपार सामैतद्धि सर्वरूपैः सममेतदेपां ब्रह्मेतद्धि सर्वाणि रूपाणि विभर्ति ॥ पदच्छेदः। अथ, रूपाणाम् , चतुः, इति, एतद्, एंपाम्, उक्थम् , अतः, हि, सर्वाणि, रूपाणि, उत्, तिष्ठन्ति, एतद्, पाम्, साग, एतद् , हि, सर्वैः, रूपैः, समम् , एतद्, एपाम्, ब्रल, एतद् , हि, सर्वाणि, रूपाणि, बिभर्ति ।। अन्वय-पदार्थ। अथ-अब । एपाम् इन । सितासितप्रभृतीनाम्सक्नेद, काले आदि । रूपाणाम्-रूपों का । एतत्-यह । चक्षुः नेत्र । 7