पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/१८७

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अध्याय २ ब्राह्मण ? यह पुरुप है यानी पुरुष का प्रतिविम्ब है, मैं उसको ब्रह्म समझकर उपासना करता हूँ, आप भी ऐसा ही करें, सुनकर वह राजा बोला कि हे अनूचान, ब्राह्मण ! इस ब्रह्म विपे ऐसा मत कहो, यह ब्रह्म नहीं है जिसको तुम उपासना करते हो, य केवल पुरुप का प्रतिबिम्ब है यानी इसमें अनुकूलत्व गुण ह, ऐसा जानकर में इसकी उपासना करता हूं और जो कोई अन्य इसको ऐसा ही जानकर उपा- सना करता है वह भी अनुकूलता यानी अनुकूल पदार्थों को प्राप्त होता है, विपरीत वरतु को नहीं, और इस पुरुप के समान इसके पुत्र पौत्र उत्पन्न होते हैं ॥ ८ ॥ मन्त्र: स होवाच गाग्र्यो य एवायमादर्श पुरुप एतमेवाह ब्रह्मोपास इति स होवाचाजातशत्रुर्मा मैतस्मिन् संवदिष्ठा रोचिष्णुरिति वा अहमेतमुपास इति स य एतमेवमुपास्ते रोचिप्णुह भवति रोचिष्णुहास्य प्रजा भवत्यथो यैः संनिगच्छति सछिस्तानतिरोचते ।। . पदच्छेदः । सः, ह, उवाच, गार्यः, यः, एव, अयम्, आदर्श, पुरुषः, एतम्, एव, अहम्, ब्रह्म, उपासे, इति, सः, ह, उवाच, अजातशत्रुः, मा, मा, एतस्मिन्, संवदिष्ठाः, रोचिष्णुः, इति, वै, अहम्, एतम्, उपासे, इति, सः, यः, एतम्, एवम्,