अध्यायं २ ब्राह्मण २ १९५ अन्वय-पदार्थ । तम्-उस लिङ्गात्मा प्राण को । एता:-ये । सप्त-सात । अक्षितया अजय देवता । उपतिष्ठन्ते-पूजते हैं। तत्-तिस विपे । या:-जो । इमान्ये । लोहिन्या-लाल । राजयः- रेखायें । अक्षन्-नेत्र बिपे हैं । ताभिः-उन करके । एनम् इस मध्यम प्राण के अन्दर । रुद्र:-रुद्र देवता । अन्वायत्ता उप- स्थित है। अथ और । या:जो । श्रापाजल । अक्षन् नेत्र विप हैं । ताभिः-उन करके । पर्जन्यः पर्जन्य देवता ।+अन्वा- यत्ता उपस्थित है। या:जो । कनीनिका-पुतली है । तया- उस करके । आदित्या सूर्य देवता । + अनन् नेत्र बिपे । + अन्वायत्त उपस्थित है। यत्-जो । + अनन् नेत्र विषे । कृष्णम्-कालापन है । तेन-उस करके । अग्नि:-अग्निदेवता। + उपतिष्ठते उपस्थित है । यत्-मो । + चक्षुपि-नेत्र बिपे । शुक्लम्-श्वेतता है । तेन-उस करके । इन्द्रः इन्द्र देवता । + उपतिष्ठते उपस्थित है। पृथिवी-पृथिवी । अधरया-नीचे- वाली । वर्तन्या-पलकों करके । एनम्-इस मध्यम प्राण के । अन्वायत्त अनुगत है । + च और । धौः- प्राकाश | उत्त- रया ऊपरवाली । + वर्तन्या=पलकों करके । + अन्वायत्त अनुगत है। याजो उपासक । एवम्-इस प्रकार । वेदः है । अस्य इसका । अन्नम्म्अन्न । न कभी नहीं । क्षीयते- क्षीण होता है। भावार्थ। हे सौम्य ! इस लिङ्गात्मक प्राण को जो सात अजय देवता इसके निकट रहकर पूजते हैं, वे ये हैं, जो नेत्र बिषे लाल रेखाओं द्वारा इस मध्यम प्राण. को पूजता है वह रुद्र है, जो जल करके नेत्र में रहनेवाले प्राण को पूजता है ? 'जानता
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