पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/२१३

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अध्याय २ ब्राह्मण २ शिरः, एषः, - . संविदाना, इति, अाग्विलः, चमसः, ऊर्धबुध्नः, इति, इदम्, तत्, हि, अर्वाग्विलः, चमसः, ऊर्ध्वबुध्नः, तस्मिन् , यशः, निहितम् , विश्वरूपम् , इति, प्राणाः, चे, यशः, विश्वरूपम्, प्राणान् , एतत् , आह, तस्य, भासते, ऋषयः, सप्त, तीरे, इति, प्राणाः, ये, ऋपयः, प्राणान् , एतत् , अाह, बाग्, अष्टमी, ब्रह्मणा, संविदाना, इति, वाग् , हि, अष्टमी, ब्रह्मणा, संवित्ते ।। अन्वय-पदार्थ । तत्-पिछले मन्त्र में जो कहा गया है उस बिपे । एप: यह । श्लोका मन्त्र । भवति-प्रमाण है। अग्विल: नीचे है मुख जिसका I + च-और । ऊर्ध्ववुध्ना ऊपर है पेंदा जिसका। चमसः ऐसा यज्ञ का कटोरा । + शिरः मनुष्य का शिर है तस्मिन्-उसमें । विश्वरूपम् यशः नाना प्रकार का विभव- वाला प्राण । निहितम् स्थित है । तस्य-उसके । तीरे-किनारे पर । सप्त-सात । ऋपयःप्राणयुक्त इन्द्रियाँ हैं । + च-और । ब्रह्मणा-वेद से । संविदाना-संवाद करनेवाली । अष्टमी- श्राठवीं । वाक्-वाणी । पासते-स्थित है। अर्वाग्विला-नीचे है मुखरूप विल जिसमें । + चोर । ऊर्ध्ववुध्ना ऊपर है पेंदा जिसमें । इति ऐसा | तत्वह । इदम्-यह । चमसःचम- साकार । शिरः मनुष्य का शिर है । हि-क्योंकि । एप: यह मनुष्य का शिर । अर्वाग्विलः नीचे छेदवाला। च-चौर । ऊर्ध्ववुध्ना ऊपर पैदावाला । चमसः यज्ञ का कटोरा है। तस्मिन्-तिसी शिर में । विश्वरूपम् नाना प्रकार का । यशा-विभववाला प्राण । निहितम् स्थित है। इतिवही । विश्वरूपम् सर्वशक्रिमान् । यश-विभववाला। निश्चय --