अध्याय १ ब्राह्मण ? - फटोरा । अन्यजायत होता भया । तस्य-तिस पहिले महिमा के । योनि: उत्पत्ति का स्थान । पूर्वे समुद्रे-पूर्व का समुद्र है। तस्य-तिस दूसरे महिमा के । योनिः उत्पत्ति की जगह । अपरे समुद्र-पश्चिम का समुद्र है । वा-और । एतौ ये दोनों । महि- मानौ-महिमा नामक कटोरे । श्रश्वम्-घोड़े के । अभितः आगे पीछे । संवभूवतुरक्खे गये । + सः वह घोड़ा । हया हय होकर । देवान्देवों को । अवहत्-ले जाता भया यानी उनका वाहन हुअा। चाजोवाजी । भूत्वा-होकर गन्धर्वान् गन्धर्षों को। + अवहत्-ले जाता.भया यानी उनका वाहन हुआ। अा-अर्वा । + भूत्वा-होकर । असुरान्-असुरों को। + अवहत्-ले जाता भया यानी उनका वाहन हुमा । अश्वः अश्व । + भूत्वा- होकर । मनुप्यान्-मनुष्यों को । + अवहत्-ले जाता भया यानी उनका वाहन हुधा । अस्य-इस घोड़े का । बन्धुः रहने का स्थान । समुद्रः समुद्र है।+ च-और । योनिः उत्पत्ति- स्थान । एवम्भी । समुद्रः समुद्र है । भावार्थ । यज्ञिय घोड़े के आगे और पीछे दो-दो कटोरे रक्खे जाते हैं, आगेवाला सोने का होता है, और पाछेवाला चाँदी का होता है, इसी को महिमा कहते हैं, सोनेवाले कटोरे को सादृश्यता आदित्य के साथ है, क्योंकि हिरण्यगर्भ प्रजा. पति का प्रतिनिधि आदित्य है, जो दिन के नाम करके प्रसिद्ध है, घोड़े के पाछ का हिस्सा जिसके सामने चाँदी का कटोरा रक्खा जाता है, उसकी सादृश्यता रात्रि यानी चंद्रमा से दी गई है, पहिले महिमा के उत्पत्ति का स्थान पूर्व का समुद्र है, वह जगह जहाँ सुवर्ण का कटोरा रक्खा- . .
पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/२३
दिखावट