२१४ वृहदारण्यकोपनिपद् स० . सा होवाच मैत्रेयी येनाहं नामृता स्यां किमहं तेन कुर्या' यदेव भगवान्वेद तदेव मे बृहीति il पदच्छेदः । सा, ह, उवाच, मैत्रेयी, येन, अहम् , न, अमृता, स्याम् , किम् , अहम् , तेन, कुर्याम् , यत् , एव, भगवान् , बेद, तत्, एत्र, मे, बेहि, इति ॥ अन्वय-पदार्थ। + तदास्तत्र । सान्यह । ह-प्रसिद्ध । मैत्रेयी-मैत्रेयो। उवाच-बोली कि । येन-जिस धन करके । अहम् मैं । अमृता मुक्त । न-नहीं। स्याम्होसनी हूँ । तन-उस धन से। अहम्=मैं । किम्-क्या । कुर्याम्-लाभ उठाऊँगी। यत्-शिस साधन को । भगवान् श्राप । एव-निश्चय करके । वेद-जानते हो। तत्-एवउसी साधन को । मेमेरी मुक्ति के लिये । हि- इति-कहिये। भावार्थ । मैत्रयो बोली कि हे भगवन् ! जिस धन करके में मुक्त नहीं हो सकती हूं, उस धन से मैं क्या लाभ उठाऊँगी ? जिस साधन को आप जानते हैं, उस साधन को मेरी मुक्ति के लिये बताइये, और जिस श्रेष्ठ धन को श्राप लिये जाते हैं उसमें मेरे को भी भाग दीजिये ॥ ३ ॥ सन्न: ४ स होवाच याज्ञवल्क्यः प्रिया बतारे नः सती पियं -
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