पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/२६०

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- .. . २४४ वृहदारण्यकोपनिषद् स० दृश्यमान सूर्य सब भूतों का सार है, और इस सूर्य का सार सब भून हैं, यानी जैसे ये सब भुनों में प्रवेशित , येसे ही इसमें सब भूत सूक्ष्न अंशों से प्रवेशित हैं, थपका कारण कार्य एकही है। और जो तेजोमय, अमृतमय पुरुष है, और जो यह नेत्रविये प्रकाशस्त्ररूप अमरधर्भवाला पुरुष है, ये दोनों एकहीं हैं। और है मैत्रेयि : यही नेत्र विष स्थिन पुरुष आत्मा अमरधा है, यही नाम है, यही सशक्तिमान है, यही सबका अधिष्ठान है ॥ ५ ॥ मन्त्रः इमा दिशः सर्वेपां भूनानां मध्वासां दिशा सर्वाणि भूतानि मधु यश्चायमामु दिनु नेनोमयोऽमृन- मयः पुरुपो यश्चायमध्यात्म, श्रीरः प्रानिश्रुत्करनेजो- मयोऽमृतमयः पुरुषोऽयमेव स योऽयमात्मेदममनमिदं ब्रह्मदछ, सर्वम् ।। पदच्छेदः। इमाः, दिशः, सर्वपाम् , भूतानाम , मधु, आसाम, दिशाम्, सर्वाणि, भूतानि, मधु, यः, च, भयम् , मासु, दिक्षु, तेजोमयः, अमृतमयः, पुरुष', यः, च, अयम्, अध्यात्मम , औत्रः, प्रातिश्रुत्कः, तेजोमयः, अमृतमयः, पुरुषः, अयम्, एव, सः, यः, अयम्, थारमा, दम्, अमृतम्, इदम् , ब्रह्म, इदम् , सर्वम् ॥ अन्वय-पदार्थ। इमा:-ये । दिशा-दिशायें । सर्वपाम्प | भूतानाम् . - .