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पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/२८६

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२७० वृहदारण्यकोपनिषद् स० पाराशर्य से, पाराशर्य ने बैजवापायन से, बैजवापायन ने कौशि- कायनि से, कौशिकायनि. ने घृतकौशिक से, घृतकौशिक ने पाराशर्यायण से, पाराशायण ने पाराशर्य से, पाराशर्य ने जातू कार्य से, जातूकर्य ने आसुरायण और यास्क से, आसु. रायण और यास्कने त्रैवणि से, त्रैवाण ने औषजन्धनि से, औप- जन्धनि ने आसुरि से,प्रासुरिने भारद्वाज से, भारद्वाज ने यात्रेय से, भात्रेय ने माण्टि से,माण्टि ने गौतम से, गौतमने गौतम से, गौतम ने वात्स्य से, वात्स्य ने शाण्डिल्य से, शाण्डिल्य ने कैशोर्यकाप्य से, कैशोर्यकाप्य ने कुमारहारीत से, कुमारहारीत ने गालव से, गालव ने विदर्मिकौण्डिन्य से, विदर्भिवौण्डिन्य ने वत्सन पातबाभ्रवसे, वत्सनपातवाभ्रव ने पन्या और सौभर से, पन्या और सौभर ने आयास्य और आङ्गिरस से और श्रायास्य आङ्गिरस ने आभूतित्वाष्ट्र से, आभूतित्वाष्ट्र ने विश्वरूपत्वाष्ट से, विश्व- रूपत्वाष्ट्र ने अश्विद्वय से, अश्वि ने दध्यार्वण से, दध्याथर्वण ने अथर्वादेव से, अथर्वादैव ने मृत्युप्राध्वंसन से, मृत्युप्राध्वंसन ने प्रध्वंसन से, प्रध्वंसन ने एकपि से, एकर्षि ने विप्रचित्ति से, विप्रचित्ति ने व्यष्टि से, व्यष्टि ने सनारु से, सनारु ने सनातन से, सनातन ने सनग से, सनगने परमष्ठी से, परमेष्ठी ने ब्रह्म से, ब्रह्म स्वयंभू है, उस ब्रह्म को नमस्कार हैं ॥१॥३॥ इति पष्ठं ब्राह्मणम् ॥ ६ ॥ इति श्रीबृहदारण्यकोपनिषदि भापानुवादे द्वितीयोऽध्यायः॥२॥