पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/३००

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२०६ वृहदारण्यकोपनिपद् स० अंन्वय-पदार्थ। + अश्वल: अश्वल ने । इति इस प्रकार । उवाच उद्या कि । याज्ञवल्क्य हे याज्ञवल्क्य ! अद्य-श्राज । श्रयम्-यह । अध्वर्यु:-प्रश्वयु । अस्मिन्-इसा या यज्ञ में । कति-कितनी। आहुती:-माहुतियां। होप्यति-होम करेंगा । इति-म पर । + याज्ञवल्क्यापाज्ञवल्क्य ने । श्राहकहा । तिनःतीन शाहुतियां । होप्यति-होम करेगा । इति-नब । साम्यह धश्वल । उवाच बोला । ताः-वे । तिम्रा तीन । कतमा:- कौन बाहुतियां हैं ?।+ याज्ञवल्क्यः हमके उत्तर याज्ञवल्या + कथयति कहते हैं । याओ । हुताः पाहुतियां कुए में डाली हुई । उज्ज्वलन्ति-अपर को प्रज्वलित होती हैं । याः जो आहुतियां । हुता: फुएड में टाली हुई । अतिनेदान्त- अत्यन्त नाद करती हैं । याः जो पाहुनियां। हुता: कुगर में डाली हुई । अधिशेरते-ऊपर जाकर नीचे को थैठ जाती हैं। + इति-इस पर । अश्वल: अश्यल ने । उवाच-पड़ा कि । तामि: उन पाहुतियों करके। + यजमानः यजमान । किम् किसको । जयति-जीतता है ? । इति इस पर याज्ञवल्क्य कहते हैं । याः-जो । हुताः प्राहुतियां । उज्वलन्ति पर मलित होती हैं। ताभिः उन करके। देवलोकम् देवलोक को । एय% घंवश्य । जयति जीनता है । हि-योकि । देवलोका देवलोक ! दीप्यते इव-प्रकाशवान् सा दीखता है। या:-जो । हुताः% प्राहुतियां । अतिनेदन्ते-अति नाद करती हैं । तामि: उन पाहुतियों करके । पितृलोकम् पितृलोक को। एक-अवश्य । जयति-जीतता है । हि-क्योंकि । पितृलोका-पितृलोक । अतीव अत्यन्त शब्द करते हैं । याजो। हुताः माहुतियां । अधिशेरते-नीचे बैठती हैं । ताभिः उन करके । मनुष्यलोकम्= r