पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/३०५

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अध्याय ३ ब्राह्मण १ पुरोनुवाक्या-पुरोनुवाक्या ऋचा है । अपान: अपान ! याज्या याज्या ऋचा है। व्यानः ज्यान । शस्या-शस्या ऋचा है। + पुनः प्रश्नः फिर प्रश्न है कि । ताभिः तीन ऋचा करके । + यजमानाम्यममान । किम्-किसको । जयतिन जीतता है। इतिहस पर । + याज्ञवल्क्या याज्ञवल्क्य ने। उवाच-उत्तर दिया कि । पुरोनुवाक्यया पुरोनुवाक्या ऋचा करके । पृथिवीलोकम्-पृथिवीलोक को। + सः वह यजमान । एक-अवश्य । जयति जीतता है । याज्यया याज्या ऋचा करके । अन्तरिक्षम् अन्तरिक्षलोक को । + जयति जीतता है। शस्यया शस्या ऋचा करके । धुलोकम् स्वर्गलोक को +जयति जीतता है। ततः हतब । होता होता। अश्वल:= अश्वल । उपरराम-चुप होगया। भावार्थ। अश्वल फिर प्रश्न करता है कि हे याज्ञवल्क्य ! इस यज्ञ बिषे आज उद्गातानामक ऋत्विज् कितने स्तोत्र पढ़ेगा, तब याज्ञवल्क्य उसके उत्तर में कहते हैं कि जो अध्यात्मसम्बन्धी है वह तीन स्तोत्र पढ़ेगा, तब अश्वल पूछता हैं कि वह तीन स्तोत्र कौन से हैं ? याज्ञवल्क्य उत्तर, देते हैं प्रथम पुरोनुवाक्या ऋचा है, दूसरी यौग्यानामक ऋचा है, तीसरी शस्यानामक ऋचा है, फिर अश्वल पूछता है कि हे याज्ञ- वल्क्य ! पुरोनुवाक्या आदि ऋचाओं से आपका क्या तात्पर्य है ? इसके उत्तर. में याज्ञवल्क्य कहते हैं कि. पुरोनुवाक्या ऋचा से मेरा मतलब प्राणवायु से है, याज्या ऋचा से मेरा मतलब अपानवायु से है, शस्या. ऋचा से मेर। मतलब व्यानवायु से है, फिर अश्वल पूछता है कि हे याज्ञवल्क्य ! ।