पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/३१५

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अध्याय-३-ब्राह्मण २ का-कौन । स्वित्-सांसा-वह । देवता=देवता है । यस्याः जिसका । अनम-आहार । मृत्युः मृत्यु है । इति=ऐसा । + श्रुत्वा सुनकर । + याज्ञवल्क्या याज्ञवल्क्य ने । + उवाच उत्तर दिया कि । अग्निः अग्नि । वै-निश्चय करके । मृत्युः= उसका मृत्यु है। सःवह अग्नि । अपाम्-जल का । अन्नम् = भक्ष्य है। + यः जो पुरुष । + इति इस प्रकार | विजानाति- जानता है । सा=वह । पुनः फिर । मृत्युम्-मृत्यु को । अप- जयति-जीत लेता है। भावार्थ । जरत्कारु के पुत्र आतभाग ने देखा . कि याज्ञवल्क्य, का उत्तर ठीक है. तब द्वितीय प्रश्न इस प्रकार करता भया कि जो यह सब दृष्ट अदृष्ट अथवा मूर्त अमूर्त अथवा स्थूल सूक्ष्म दिखाई देता है वह सब ग्रह और अतिमहरूप मृत्यु का. आहार है तब वह कौन देवता है ? जिसका आहार ग्रह. अतिग्रहरूप मृत्यु है, याज्ञवल्क्य महाराज उत्तर देते हैं कि वह देवता अग्नि है, वह अग्नि जल का भक्ष्य है, जो मनुष्य. इस. विज्ञान को जानता है, वह मृत्यु को जय करता है । याज्ञ: वल्क्य :महाराज ने जो ऐसा दृष्टान्त देकर मृत्यु • का मृत्यु बताया है उससे उनका मतलब यह है कि.संसार में जितने पदार्थ हैं सब मृत्यु से ग्रसित हैं, जो मृत्यु से ग्रसित नहीं है। उसका अन्वेषण करना उचित है वही:ब्रह्म ज्ञान का साधन है, वही ब्रह्म ज्ञान ईश्वर का साक्षात् कराता है और तभी पुरुप सब दुःखों से छूट जाता है ॥ १० ॥ मन्त्रः ११" -;': ... याज्ञवल्क्येति होवाचं यत्रायं पुरुषो म्रियतं उदस्मात्