पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/३३५

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अध्याय ३ ब्राह्मण ५ ३२१ ब्राह्मणः, सः, ब्राह्मणः, केन, स्यात्, येन, स्यात् , तेन, ईदृशः, एव, अतः, अन्यत् , आर्त्तम् , ततः, ह, कहोलः, कौपीतकेयः, उपरराम ॥ अन्वय-पदार्थ । अथ ह इसके पीछे। कौषीतकेयः कुपीतक का पुत्र । कहोलाहोल । पप्रच्छ-प्रश्न करता भया । है और । इति- ऐपा । उक्त्वा कह कर । उवाच-सम्बोधन किया कि । याज्ञवल्क्य-हे याज्ञवल्क्य ! । यत्-जो। एव-निश्चय करके । साक्षात्-साक्षान् । + च-और । अपरोक्षात्-प्रत्यक्ष । ब्रह्म- ब्रह्म है! +च-और । यः-जो। आत्मा-मात्मा । सर्वान्तर: मबके अभ्पन्तर है । तम्-उस प्रान्मा को। मे मेरे लिये । न्याचश्व कहिये।+ ग्राज्ञवल्क्य: याज्ञवल्क्य ने।+उघाच कहा । + कहोल हे कहोज ! । एषः यही हृदयस्थ । ते-तेरा। श्रात्मा ग्रास्मा । सर्वान्तरः सन्तिर्यामा है। + पुनः फिर । + कहोला-कहोल ने । पप्रच्छ-पूछा कि । याज्ञवल्क्य हे याज्ञः वल्क्य ।+साम्वह। कतमः कौनसा श्रात्मा । सर्वान्तर:: सर्वान्तर्यामी है ? + एपः-यह । + मम प्रश्न: मेरा प्रश्न है। याज्ञवल्क्या याज्ञवल्क्य ने । उवाचकहा। यः जो यात्मा । अशनायापिपासे भूख प्यास को। शोकम्-शोक। मोहम्-मोह को। जराम्जरा। मृत्युम् मृत्यु को। अत्येति-उल्लंघन करके विद्यमान है। सः एव-वही।+ते आत्मा-तेरा श्रात्मा है।+स: एव-वही । सर्वान्तर:-सब के अभ्यन्तर है । वै-निश्चय करके । तम्-उसी । पतम्-इस । आत्मानम्-धारमा को । विदित्वा- जान कर । अथ-ौर । पुत्रेषणायाः च-पुत्र की इच्छा से । वित्तपणाया: वित्त की इच्छा से । लोकैपणाया:-लोक की इच्छा से । व्युत्थाय-छुटकारा पा कर । ब्राह्मणा:-ब्राह्मण