म्यगर ।+स:- ३६० बृहदारण्यकोपनिपद् स० अन्वय-पदार्थ । अथ ह इसके बाद । वाचनवी-गार्गी । उवाच-बोली कि। ब्राह्मणाः भगवन्तः हे पूज्य, ग्राहाणो ! । हन्त-यदि भापकी अनुमति हो तो। इमम्-इन याज्ञवल्क्य से। द्वौदो। प्रश्नो प्रश्न । अहम् =मैं । प्रक्ष्यामि-पूलूंगी। चेत् = वह । मे मेरे । तीमउन दोनों प्रश्नों का । वक्ष्यति-उत्तर देंगे तो। युष्माकम् -आप लोगों में । कश्चित् कोई भी । इमम् = इस । ब्रह्मोद्यम्बह्मवादी याज्ञवल्क्य को। जातु-कमी । न-न। जेता-जीत पावेगा । इति इस प्रकार | + श्रुत्वाम्मुन कर । + ब्राह्मणानाहाण । + पाहुःबोले कि । गार्गिके गार्गि ! पृच्छ-तुम पूछो । इति ऐसा सयों ने कहा। भावार्थ । आरुणि उद्दालक के चुप होने पर वह प्रसिद्धा वाचनवी गार्गी बोली कि हे ब्रह्मवेत्ताओ ! हे परमपूज्य, महात्माओ ! यदि आप लोगों की आज्ञा हो तो में इन याज्ञवल्क्य महा- राज से दो प्रश्न पूर्वी, हे वासणो ! यदि वह उन मेरे दोनों प्रश्नों का उत्तर कह देंगे तो मुझको निश्चय हो जायगा कि आपलोगों में से कोई भी ब्रह्मवादी याज्ञवल्क्य महाराज को जीत नहीं सकेगा। गार्गी के इस वचन को सुन कर सब ब्राह्मण प्रसन्न होते हुये बोले कि, हे गार्गि! तुम अपनी इच्छानुसार याज्ञवल्क्य से अवश्य प्रश्न करो ॥१॥ मन्त्रः २ सा होवाचाहं वै त्वा याज्ञवल्क्य यथा काश्यो वा वैदेहो वोग्रपुत्र उज्ज्यं धनुरधिज्यं कृत्वा द्वौ वाणवन्तौ
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