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पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/३८१

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अध्याय ३ बाह्मण ८ ३६७ . । .. एव, तत्, ओतम्, च, प्रोतम्, च, इति, "कस्मिन् , नु, खलु, आकाशः, ओतः, च, प्रोतः, च, इति ।। अन्वय-पदार्थ । साबह याज्ञवल्क्य । ह-स्पष्ट । उवाच-बोले कि । गार्गि हे गागि! यत्-जो दिवा धुलोक के। ऊचम् ऊपर है। यत्-नो। पृथिव्याः पृथ्वीलोक के । अवाक्-नीचे है। यदन्तरा=जिसके वोच में । इमे-ये । द्यावापृथिवी युलोक और पृथ्वीलोक स्थित हैं । यत्-जिसको । पुरुपा लोग । भूतम् भूत । भवत्- वर्तमान । च-और । भविष्यत्-भविष्यत् नाम से।ाचक्षते- कहते हैं । तत् वह सब आकाशे-पाकाश में । श्रोतम्-योत । च-और । प्रोतं चम्प्रोत हैं। इति-ऐसा सुन कर । नु-फिर गार्गी ने प्रश्न किया कि ! आकाश: आकाश । कस्मिन्-किस में । खलु-निश्चय करके । श्रोतम्-धोत । च-और । प्रोतःच- प्रोत हैं। इति इस प्रकार प्रश्न किया। भावार्थ । गार्गी का प्रश्न सुनकर याज्ञवल्क्य बोले कि हे गार्गि ! जो दिवलोक के ऊपर है, और जो पृथ्वीलोक के नीचे है, और जो दिवलोक और पृथ्वीलोक के मध्य में है, 'और जिसको विद्वान् लोग भूत, वर्तमान, भविष्यत् नाम से कहते हैं, वह सब आकाश में ओत प्रोत है अर्थात् आकाश के आश्रय है, ऐसा सुनकर गार्गी पुनः पूछती है कि, हे याच- वल्क्य ! वह आकाश किसमें ओत प्रोत है, इसका उत्तर आप मुझसे सविस्तार कहें ॥ ७ ॥ मन्त्रः ८ स होवाचैतट्टै तदक्षरं गार्गि ब्राह्मणा अभिवदन्त्य-