पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/३८४

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. = 1 । ३०६ बृहदारण्यकोपनिषद् सः आदित्यम्-सूर्य नामनामन । चन्द्रम्-चन्द्रमान श्रोत्रम् का । दिशा-दिशा में । आत्मा-गरीर का श्रानाश । श्राका- शम्बाह्य आकाशने शिरीरम्-शारीरक पार्थिवभागापृथिर्वाम्- पृथ्वी में। लोमानिनोवा । औषधिः औषधी में । केशाः केश ! वनस्पतीन्न्वननति में ! च-और । लोहितमन्नत यानी रजोगुण बलीयभान । रेतःदीयं । अन्सुम्जल में। निधीयते-जा मिलते हैं । तदा । अयम्-यह । पुल्यः पुन्प । वकिा बाधार पर । भवति-स्थित रहता है? । + तदुचरे-इसके उत्तर में । याज्ञवल्क्यः याज्ञवल्क्य में। उवात्र-कहा । सोम्य मार्त्तनाग है सौन्य, भासाग !! त्वम् तु 1 माम्-नुनको । हस्तम्-हाथ । अाहरदे। बाबाम्हन नुन । एतस्य वेदितव्यम्-इस जानने योग्य हो। एव-प्रवस्य । बेदिप्यावः जानेंगे । एतत् अह वस्तु । नौ हमारे तुम्हारे। + निलनुम् निश्चय करने के लिये । सजने- जनसन में । न-दहीं । शस्यत-शच्य है । ह-तुब । तौ- दोनों । उत्क्रस्य र एकान्तम्-एकान्त जगह में । + गत्वा-जा कर । मन्त्रवाचनाने विचार करते भये । - चौर । विचार्य-विचार करके । यत्-जो कुछ । ऊचतुः-उन दोनों ने कहा 1 तबह । कर्म ह एव-जन ही को कहा। अथ इसके पीछे। यस्जो कुछ । प्रशंसतुः-प्रशंसा करते नये । तन्-वह । कर्म-जन की ही । प्रशशंसतु: प्रशंसा करते भये । हिक्योकि । वैनिश्च से । पुरयेन-पुण्यजनक कर्न । पुरयः मुख्य । च-चौर । पापेनापजनक ऊन से ! पापा जापानक्ति होना है। इति-ऐला। श्रुत्वा-सुनकर ! ततः नयाचान । जारत्कारयः रत्कार गोत्र का । प्रातः भागात भाग । उपरराम-उपराम यानी चुप होता भया।