अध्याय ३ ब्राह्मण ३८१ द्वादशादित्यास्त एकत्रिशदिन्द्रश्चैव प्रजापतिश्च त्रय- स्त्रिछशाविति ॥ पदच्छेदः। स:, ह, उवाच, महिमानः, एव, एपाम्, एते, त्रयस्त्रिंशत्, तु, एव, देवाः, इति, कतमे, ते, त्रयस्त्रिंशत् , इति, अष्टौ, वसत्रः, एकादश, रुद्राः, द्वादश, आदित्याः, ते, एकत्रिंशत् , इन्द्रः, च, एव, प्रजापतिः, च, त्रयस्त्रिंशी, इति ॥ अन्वय-पदार्थ । सम्बह याज्ञवल्क्य । हस्पष्ट । उवाच-बोले कि । एषाम् = इनमें से । एव-निश्चय करके । एते-थे । त्रयस्त्रिंशत्-तेंतीस देवता महिमाना=महिमा के योग्य हैं। + विदग्धः-विदग्ध ने। +पृच्छतिम्पूछाकिाते-वे।कतमे कौनसे । त्रयस्त्रिंशत्-तेंतीस। देवाः एव-देवता हैं । इति इसपर । + याज्ञवल्क्यःयाज्ञ- वल्क्य ने । + श्राह-उत्तर दिया। अष्टो-पाठ । वसवः वसु । एकादशम्ग्यारह । रुद्रा-रुद्र । द्वादशम्यारह । श्रादित्या:- सूर्य । इति इस प्रकार । एकत्रिंशत्-एकतीस हुये । च-ौर । इन्द्रः इन्द्र । च-और । प्रजापतिः प्रजापति । इति लेकर । प्रयस्त्रिशीततीस हुये। भावार्थ । तब याज्ञवल्क्य बोले कि, हे विदग्ध ! इन में से निश्चय करके केवल तेंतीस देवता महिमा के योग्य हैं, विदग्ध ने फिर याज्ञवल्क्य से कि वे कौन तेंतीस देवता हैं, यह सुन कर पूछा याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया, हे विदग्ध ! आठ वसु, ग्यारह
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