३८० बृहदारण्यकोपनिषद् स० अन्तर्गत तेंतीस देवता हैं, ऐसा सुनकर शाकल्य विदग्ध ने कहा हां ठीक है, फिर शाकल्य विदग्ध ने पूछा हे याज्ञ- वल्क्य ! उन तेंतीसों के अन्तर्गत कितने देवता हैं, ऐसा सुनकर याज्ञवल्क्य ने कहा हे विदग्ध ! छः देवता हैं, इसको सुनकर शाकल्य ने कहा हां ठीक है, फिर शाकल्य ने पूछा हे याज्ञवल्क्य ! उनके अन्तर्गत कितने देवता हैं, याज्ञवल्क्य ने कहा तीन हैं, फिर शाकल्य ने पूछा उन तीन के अन्तर्गत कितने देवता हैं, याज्ञवल्क्य ने कहा दो हैं, फिर शाकल्य ने पूछा हे याज्ञवल्क्य ! उन दो के अन्तर्गत कितने देवता हैं, याज्ञवल्क्य ने कहा, हे विदग्ध ! उस दो के अन्तर्गत अध्यर्द्ध देवता है यानी वह सूक्ष्म वायुरूप सत्ता है जिसके रहने पर सब स्थावर जंगम पदार्थ परमवृद्धि को प्राप्त होते रहते हैं, और यही कारण है कि उस वायुदेव को अध्यर्द्ध कहते हैं, शाकल्य ने कहा हां ठीक है, तदनन्तर विदग्ध ने पूछा हे याज्ञवल्क्य ! उसके अन्तर्गत कितने देवता हैं, याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया एक है, शाकल्य ने फिर पूछा कि उसके अन्तर्गत कितने देवता हैं, याज्ञवल्क्य ने कहा वे तीन और तीनसौ और तीन हजार हैं, फिर विदग्ध पूछता है, हे याज्ञवल्क्य ! वे तीन और तीनसौ और तीन और तीन सहस्र कौन देवता हैं ॥१॥ मन्त्रः २ स होवाच महिमान एवैषामेते त्रयस्त्रिछशवेव देवा इति कतमे ते त्रयस्त्रिशदित्यष्टौ वसद एकादश रुद्रा
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