पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/३९७

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अध्याय ३ ब्राह्मण १, ३८३ अग्नि, पृथित्री, वायु, आकाश, सूर्य, स्वर्ग, चन्द्रमा, नक्षत्र यही आठ वसु हैं, इन्हीं आठ वसुओं में दृश्यमान सब जगत् स्थित है, इस लिये वसु इस कारण कहलाते हैं कि वे अपने ऊपर जीवमात्र को बसाये हुये हैं ॥ ३ ॥ कतमे रुद्रा इति दशेमे पुरुषे प्राणा आत्मैकादशस्ते यदास्माच्छरीरान्मादुत्क्रामन्त्यथ रोदयन्ति तद्यद्रोद- यन्ति तस्माद्रुद्रा इति ॥ पदच्छेदः। कतमे, रुद्राः, इति, दश, इमे, पुरुष, प्राणाः, आत्मा, एकादशः, ते, यदा, अस्मात्, शरीरात् , मात्, उत्क्रा- मन्ति, अथ, रोदयन्ति, तत् , यत्, रोदयन्ति, तस्मात् , रुद्राः, इति ॥ अन्वय-पदार्थ। + विदग्धा-विदग्ध । + पृच्छति-फिर पूछता है । याज्ञ- वल्क्य हे याज्ञवल्क्य ! । + ते-वे ग्यारह । कतमे-कौन से रुद्रा:-रुद्र हैं । इति इस पर । + याज्ञवल्क्यः याज्ञवल्क्य । +गदति कहते हैं कि । पुरुष-पुरुष के विपे । इमे-ये । दश= दश । प्राणा:-पांच कर्मेन्द्रिय और पांच ज्ञानेन्द्रिय । च-और । एकादश: ग्यारहवां । आत्मा मन । एते-ये ही। रुद्रा-ग्यारह रुख हैं। यदा-जव । ते वे रुद्र । अस्मात्-इस । मात्= मरणधर्मवाले । शरीरात्-शरीर से । उत्क्रासन्ति-निकलते हैं। अथ-तब । रोदयन्ति-मरनेवाले के सम्बन्धियों को रुलाते हैं।