३८४ बृहदारण्यकोपनिपद् स० यत्-चू कि । तत्-मरण समय में 1 +तेने । रोदयन्ति- रुलाते हैं। तस्मात्-इस लिये । रुद्रा-वे रुद्र । इतिकरके। कथ्यन्ते-कहे जाते हैं। भावार्थ । विदग्ध फिर पूछते हैं, हे याज्ञवल्क्य ! वे ग्यारह रुद्र कौन कौन हैं, इनके नाम आप बतायें। याज्ञवल्क्य महाराज कहते हैं, हे विदग्ध ! जो पुरुष के विषय पांच कर्मेन्द्रिय, पांच ज्ञानेन्द्रिय, एक मन है ये ही ग्यारह रुद्र है, जब वह रुद्र इस मरणधर्मवाले शरीर से निकलते हैं तब मरनेवाले के सम्बन्धियों को रुलाते हैं चूंकि मरणसमय में वे रुलाते हैं इस कारण वे रुद्र कहे जाते हैं ॥४॥ मन्त्र: ५ कतम आदित्या इति द्वादश वै मासाः संवत्सरस्यैत आदित्या एते हीदछ सर्वमाददाना यन्ति ते यदिद, सर्वमाददाना यन्ति तस्मादादित्या इति ॥ पदच्छेदः। कतमे, आदित्याः, इति, द्वादश, चै, मासाः, · संवत्सरस्य, एते, आदित्याः, एते, हि, इदम् , सर्वम् , श्राददानाः, यन्ति, ते, यत्, इदम्, सर्वम्, आददाना, यन्ति, तस्मात्, आदित्याः, इति ।। अन्वय-पदार्थ।. + विदग्धः विदग्ध । पुनः फिर । + आह-पूछता है कि । याज्ञवल्क्य हे याज्ञवल्क्य !। कतमे वे कौन से । आदित्या बारह सूर्य हैं। याज्ञवल्क्या याज्ञवल्क्य ने। + उवाच-कहा कि।
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