पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/४१५

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अध्याय ३ ब्राह्मण ४०१ उस पुरुप को जानता हूं जो सबके आत्मा का परम आश्रय है, और जिसके निसबत तुम पूछते हो, हे शाकल्य ! वही पुरुष अज्ञान विषे स्थित है, वही तुम्हारे विषे स्थित है, हे शाकल्य! यादे श्राप और कुछ पूछना | चाहो तो पूछो, मैं उसका उत्तर दूंगा । इस पर शाकल्य पूछते हैं हे याज्ञवल्क्य ! ऐसे तम- सम्बन्धी पुरुप का देवता कौन है ! याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया कि हे शाकल्य, वह मृत्यु है ॥ १४ ॥ मन्त्रः १५ रूपाण्येव यस्यायतनं चक्षुलोको मनो ज्योतियों वै नं पुरुपं विद्यात्सर्वस्यात्मनः परायण, स वै वेदिता स्यात् । याज्ञवल्क्य वेद वा अहं तं पुरुष सर्वस्यात्मनः परायणं यमात्य य एवायमादर्श पुरुषः स एप वदैव शाकल्य तस्य का देवतेत्यमुरिति होवाच ॥ पदच्छेदः। रूपाणि, एव, यस्य, आयतनम्, चक्षुः, लोकः, मनः, ज्योतिः. यः, वै, तम्, पुरुपम् , विद्यात् , सर्वस्य, आत्मनः, परायणम्, सः, वै, वेदिता, स्यात्, याज्ञवल्क्य, वेद, वै, अहम्, तम्, पुरुषम् , सर्वस्य, श्रात्मनः, परायणम् , यम्, श्रात्य, यः, एव, अयम्, आदर्श, पुरुपः, सः, एषः, वद, एव, शाकल्य, तस्य, का, देवता, इति, असुः, इति, ह, उवाच ॥ अन्वय-पदार्थ। यस्य-जिस पुरुष का । रूपाणि-रूप । एवम्ही । प्रायत-