पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/४३१

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अध्याय ३ ब्राह्मण त्वम्-तुम । किंदेवतः असि-कौन देवतावाले हो यानी किस देवता को तुम उत्तर दिशा का अधिपति मानते हो?। इति ऐसा। +श्रुत्वा-सुनकर ।+याजवरक्या याज्ञवल्क्य ने+आह-उत्तर दिया कि । सोमदेवतः सोम देवतावाला है यानी चन्द्रमा को प्रधान मानता हूं ।+पुनः प्रश्नः फिर शाकल्य का प्रश्न हुआ कि । साया । सोमःचन्द्रसम्बन्धी सोमलता। कस्मिन्-किसमें । प्रतिष्टितः स्थित है ?। इति इस पर । + याज्ञवल्क्या याज्ञ- चल्पय ने | + श्राह-उत्तर दिया कि। दीक्षायाम्-दीक्षा में स्थित है। इति इस पर। + शाकल्यः-शाकल्य ने। + आह- पूछा। दीक्षा-दीक्षा । कस्मिन्-किंसमें प्रतिष्टिता:स्थित है । नु-या नेरा प्रश्न है। इति=ऐसा। + श्रुत्वा-सुन कर। + याज्ञवल्क्य: याज्ञवल्क्य ने । श्राहकहा कि। सत्ये इति- सत्य में स्थित है । अपि-और । तस्मात् इसी कारण । दीक्षि- तम्-धीचित यानी दीक्षा लेनेवाले को । सत्यम्=सत्य । पाहु- कहते हैं । त्वम्-तुम । सत्यम्-सत्य । वद-कहो। हि-क्योंकि । दीक्षा-दीक्षा । सत्येन्सत्य में । एकही । प्रतिष्टिता प्रतिष्ठित है । इति-ऐसा । + श्रुत्वा-सुन कर । + शाकल्यः शाकल्य ने। + श्राह-पूड़ा फि । सत्यम् सत्य । कस्मिन्- किम में । प्रतिष्ठितम्-स्थित है। नु-यह मेरा प्रश्न है । इति= ऐसा । + शुन्या-सुन कर. + याज्ञवल्क्य याज्ञवल्क्य ने। ह उवाच-स्पष्ट उत्तर दिया। हृदये हृदय में स्थित है। हि- क्योंकि । हृदयेन हृदय करके । सत्यम्-सत्य को ।+ पुरुषा: पुरुष।जानाति-जानता है । हि एव-इली कारण । हृदये हृदय में । सत्यम् सत्य । प्रतिष्ठितम्-स्थित:। + भवति रहता है। + शाकल्याह-शाकल्य ने कहा। याज्ञवल्क्य हे याज्ञवल्क्य !। पतत-यह बात । एवम् एक-ऐसी ही है, जैसा तुम कहते हो। २७.