पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/४३२

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बृहदारण्यकोपनिपद् स० भावार्थ । शाकल्य पूछते हैं कि हे याज्ञवल्क्य ! उत्तर दिशा में आप किस देवता को प्रधान मानते हैं ? यह सुन कर याज्ञ- वल्क्य ने उत्तर दिया कि चन्द्रमा देवता को प्रधान मानता हूं। फिर शाकल्य ने प्रश्न किया, वह चन्द्रमासम्बन्धी साम- लता किसमें स्थित है ? याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया कि दीक्षा में स्थित है । शाकल्य ने पूछा दीक्षा किसमें स्थित है याज्ञ- वल्क्य ने उत्तर दिया सत्य में, और इसी कारण दीक्षा लेने- वाले को सत्य भी कहते हैं, और यज्ञकर्म के प्रारम्भ में दीक्षा लेनेवाले को कहते हैं कि तुम सत्य बोलो, क्योंकि दीक्षा सत्य में ही स्थित है, फिर शाकल्य ने पूछा सत्य किसमें स्थित है ? याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया सत्य हृदय में स्थित है, क्योंकि हृदय करके ही सत्य को पुरुष जानता है, और इसी कारण हृदय सत्य में स्थित है, इस पर शाकल्य ने कहा जो तुम कहते हो सो ठीक है ॥ २३ ॥ मन्त्र: २४ किंदेवतोऽस्यां ध्रुवायां दिश्यसीत्यग्निदेवत इति सोऽग्निः कस्मिन्प्रतिष्ठित इति वाचीति कस्मिन्वाक्पति- प्ठितेति हृदय इति कस्मिन्नु हृदयं प्रतिष्ठितमिति ॥ पदच्छेदः। किंदेवतः, अस्याम्, ध्रुवायाम् , दिशि,असि, इति, अग्निदे- वतः, इति, सः, अग्निः,कस्मिन् , प्रतिष्ठितः, इति, वाचि, इति, कस्मिन् , वाक्, प्रतिष्ठिता, इति, हृदये, इति, कस्मिन् , नु, हृदयम् । प्रतिष्ठितम्, इति ।