पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/४३६

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४२२ बृहदारण्यकोपनिषद् स० मूर्धा, विपपात, अपि, ह, अस्य, परिमोषिणः, अस्थीनि, अपजहुः, अन्यत् , मन्यमानाः ॥ अन्धय-पदार्थ। + शाकल्यः शाकल्य ने। + आह-पूछा कि । त्वम्-माप । च-और । आत्मा चापका थारमा । कस्मिन्-किसमें । प्रतिष्टितौ स्थित । स्थ: है । नु-यह मेरा प्रश्न है । इति इस पर |+याज्ञवल्क्यःयाज्ञवल्क्य ने । + श्राह-उत्तर दिया। प्राणेन्प्राण में है ! + पुनः फिर । + पप्रच्छ शाकल्य ने पूछा कि । प्राण प्राण । कस्मिन्-किसमें । प्रतिष्ठितः स्थित है। इति-इस पर । +याज्ञवल्क्य: याज्ञवल्क्य ने | + श्राहकहा कि । अपान-पान में है। इति-फिर । + प्रश्न:शाकल्म ने पूछा कि । अपानम्म्अपान । कस्मिन्-किसमें । प्रतिष्टितः स्थित है । नु-यह मेरा प्रश्न है। इति इस पर । याज्ञवल्क्यः याज्ञवल्क्य ने । उवाच-उत्तर दिया । व्याने ध्यान में । + शाकल्यः शाकल्य ने । + उवाच-पूछा । व्यानाध्याम । कस्मिन्-किसमें । प्रतिष्ठितः स्थित है । नु-यह मेरा प्रश्न है। इति इस पर । + याज्ञवल्क्यः याज्ञवल्क्य । + उत्तरम्- उत्तर । + ददाति देते हैं कि । उदाने-उदान में। इति इस पर । उदान:-उदान । कस्मिन्-किसमें । प्रतिष्टितःस्थित : है। नु-यह मेरा प्रश्न है । इति इस पर । याज्ञवल्क्या याज्ञ- वल्क्य ने । उवाच-उत्तर दिया कि । समाने-समान में । य:- जो (वेद में)। न इति-नेति । न इति-नेति । इति-करके । + निर्दिष्टः कहा गया है। साबही । एप: यह है। प्रात्मा श्रात्मा । अगृह्यः अग्राह्य है। हिक्योंकि । सः वह भात्मा। नम्नहीं । गृह्यते ग्रहण किया जा सकता है । + सम्वह ।