पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/४४४

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४३० वृहदारण्यकोपनिपद् स० को मृत्यु मार लेता है तब फिर वह पुरुष किस मूल से उत्पन्न होता है, यदि आप कहें कि वीर्य से. मनुष्य उत्पन्न होता है तो यह बात ठीक नहीं है क्योंकि वीर्य तो जिंदा पुरुप में रहता है मरे हुये पुरुष में नहीं रहता है परन्तु कटे वृक्ष की जड़ तो बनी रहती है अथवा उसका वीर्य बना रहता है उससे दूसरा वृक्ष उत्पन्न हो पाता है पर मनुष्य के मर जाने पर उसका कोई मूल कारण नहीं दीखता है जिससे उसकी उत्पत्ति कही जाय इसकी उत्पत्ति का वृक्षवत् कोई कारण होना चाहिये ।। २७-५ ।। मन्त्रः२७-६ यत्समूलमादृहेयुट न पुनराभवेत् । मर्त्यः स्त्रि- न्मृत्युना वृक्णः कस्मान्मूलात्मरोहति ।। पदच्छेदः। यत् , समूलम् , आवृहेयुः, वृक्षम् , न, पुनः, अाभवत्, मर्त्यः, स्वित्, मृत्युना, वृक्णः, कस्मात् , मूलात्, प्ररोहति ।। अन्वय-पदार्थ । यत्-जो । ससूलम् अढ़ सहित । वृक्षम्=वृक्ष को श्रावृहेयुः नष्ट कर दें तो । पुनः फिर । न-नहीं वह । श्राभ- वेत् उत्पन्न होवे । + परम्-परन्तु । मृत्युना वृक्णः मृत्यु करके छिन्न किया हुआ | मर्त्यः पुरुष । कस्मात्-किस । मूलात्-मूल से । प्ररोहति उत्पन्न होता है । स्वित्-यह मेरा प्रश्न है। भावार्थ । 'याज्ञवल्क्य कहते हैं कि, हे ब्राह्मणो ! जो वृक्ष जड़ $ 1