पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/४४५

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अध्याय ३ ब्राह्मण पुरुष किस सहित नष्ट कर दिया जाता है फिर उससे नवीन वृक्ष उत्पन्न नहीं होता है तब आप बताइये यह मृत्यु करके छिन्न हुआ मूल से उत्पन्न होता है ॥ २७-६ ॥ मन्त्रः २७-७ जात एव न जायते को न्वेनं जनयेत् पुनः । विज्ञानमानन्दं ब्रह्म रातिर्दातुः परायणं तिष्ठमानस्य तद्विद इति ॥ इति नवमं ब्राह्मणम् ॥1॥ इति श्रीबृहदारण्यकोपनिपदि तृतीयोऽध्यायः ।। ३ ।। पदच्छेदः। जातः, एव, न, जायते, कः, नु, एनम् , जनयेत्, पुनः, विज्ञानम्, आनन्दम् , ब्रह्म, रातिः, दातुः, परायणम् , तिष्ठमानस्य, तद्विदः, इति । अन्वय-पदार्थ । जातःजो उत्पन्न हुश्रा है । सा=वह फिर जड़ काटे जाने बाद । एव-निःसंदेह । न-नहीं । जायते-उत्पन्न होता है । नु-तब यह मेरा प्रश्न है कि । एनम्-इस मृतक पुरुष को । पुनः फिर । का कौन । जनयेत् उत्पन्न करेगा जव किसी ब्राह्मण ने उत्तर नहीं दिया तब याज्ञवल्क्य ने स्वयं निम्न प्रकार उत्तर दिया। विज्ञानम्-विज्ञानस्वरूप । श्रानन्दम् प्रानन्द- स्वरूप । ब्रह्मब्रह्म है । या जो।राति:-धन के । दातुम् देनेवाले है यानी यज्ञकर्ता हैं । यःजो। तिष्ठमानस्य-ज्ञान में दृढ़ हैं । च-ौर । तद्विदः-जो ब्रह्म के जाननेवाले हैं उनका । ब्रह्मा- ब्रह्म । परायणम्-परमगति है । इति-ऐसा उत्तर दिया।