अध्याय ४ ब्राह्मण ३ ५१५ वस्तु श्रानन्द और अज्ञान का अनुभव सुषुप्ति में न होता तो जाग्रत् होने पर उसको स्मृतिज्ञान न होता, स्मृतिज्ञान करके हो जाना जाता है कि जीवात्मा सुपुप्ति अवस्था में जो वहां स्थित रहती हैं उनको वह देखता है, और जो नहीं रहती हैं उनको वह नहीं देखता है, दर्शनशक्ति तो उसको उस अवस्था में भी अवश्य है, क्योंकि द्रष्टा अविनाशी है इसलिये उसकी दर्शनशक्ति भी सदा विद्यमान रहती है, ऐसा होने पर प्रश्न उठता है कि अन्य वस्तु को क्यों नहीं देखता है इसका उत्तर यही है कि उस आत्मा से अति- रिक्त कोई अन्य वस्तु नहीं है, जिसको वह सुपुप्ति अवस्था में देखे ॥ २३ ॥ मन्त्र: २४ य तन्न जिघ्रति जिघन्वै तन्न जिघ्रति न हि घ्रातु- घातर्विपरिलोपो विद्यतेऽविनाशित्वान्नतु तद्वितीयमस्ति ततोऽन्यद्विभक्तं यज्जिप्रेत् ॥ पदच्छेदः। यत्, वै, तत्, न, जिवति, जिघ्रन्, वै, तत्, न, जिघ्रति, न, हि, प्रातुः, प्रातः, विपरिलोपः, विद्यते, अविनाशित्वात् , न, तु, तद्, द्वितीयम् , अस्ति, ततः, अन्यत् , विभक्तम्, यत् , जिप्रेत् ।। अन्वय-पदार्थ। + सावह जीवात्मा । तत्-उस सुपुप्ति अवस्था में । नम्नहीं । जिनति-सूंघता है । यत्-जो । इति ऐसा ।
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