पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/५५१

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अध्याय ४ ब्राह्मण ३ ५३७ पदच्छेदः। तत् , यथा, राजानम् , प्रयियासन्तम् , उग्राः, प्रत्येनसः, सूतग्रामण्यः, अभिसमायन्ति, एवम् , एव, इमम् , आत्मानम्, अन्तकाले, सर्वे, प्राणाः, अभिसमायन्ति, यत्र, एतत् , ऊर्बोच्चासी, भवति ॥ अन्वय-पदार्थ। जीवस्य श्रन्तकाले-मरणकाल में जीवात्मा के साथ । के- कौन कौन । गच्छन्ति जाते हैं। तत्-इस विषय में। + दृष्टान्तः- दृष्टान्त देते है कि । यथा-जैसे । उग्राः प्रत्येनसा पुलिस के लोग और मजिस्ट्रेट श्रादिक । + च-और । सूतग्रामण्यः= गांव के मुखिया लोग । प्रयियासन्तम्-वापिस जानेवाले । राजानम्-राजा के । अभिसमायन्ति-संमुख विना बुलाये आते हैं । एवम् एव इसी प्रकार । सर्व-सब । प्राणा: प्राण चक्षुरादि इन्द्रिय । यत्र-जब । अन्तकाले मरण समय । एतत् यह जीवात्मा । ऊर्बोच्लासी-ऊर्वश्वासी । भवति- होता है। + तदा तय । एनम्-इस । आत्मानम्-धात्मा के । अभिसमायन्ति-सामने उपस्थित होती हैं । भावार्थ । मरती वेला में जीवात्मा के साथ कौन कौन जाते हैं, इस विषय में दृष्टान्त देते हैं कि, जैसे पुलिस के लोग, गांव , के मुखिया लोग वापिस जानेवाले राजा के सन्मुख विना वुलाये थाते हैं उसी प्रकार सब चक्षुरादि इन्द्रियां जब यह जीवात्मा ऊर्ध्वश्वासी होता है तब उसके सामने उसके साथ चलने के लिये उपस्थित हो जाती हैं ॥ ३ ॥ इति तृतीयं ब्राह्मणम् ॥ ३ ॥