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पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/५६९

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अध्याय ४ ब्राह्मण ४ ५५५ ऊपर कह आया हूँ उस विषय में ये मन्त्र प्रमाण हैं, यह प्रसविद्या का मार्ग अतिसूक्ष्म है. चारों तरफ फैल रहा है और पुरातन है किसी को शंका नहीं कि यह नवन मार्ग है, यह वेदविहित मार्ग सदा से चला आता है, इस मार्ग को मैं बड़े परिश्रम के बाद प्राप्त हुधा हूँ, यानी इसके लिये मैंने श्रवण, मनन, निदिध्यासन किया है, जो अन्य ब्रह्मवित् परमज्ञानी पुरुष इस सूक्ष्म मार्ग को ग्रहण करेंगे वे भी इसके सुखमय धाम को प्राप्त होंगे। कब होंगे, जन ये स्थूल शरीर के छोड़ने के पहिले ही सब सम्बन्धों से मुक्त हो जायेंगे, अथवा जीवन्मुक्त होकर आवागमन से रहित हो जायेंगे ॥८॥ मन्त्र: तस्मिञ्जुस्लमुत नीलमाहुः पिङ्गल हरितं जोहित च । एप पन्धा ब्रह्मणा हानुवित्तस्तेनैति ब्रह्मवित्पुण्यकृत्तेज- सश्च ॥ पदच्छेदः। तन्मिन्, शुक्लम्, उत, नीलम् , अाहः, पिङ्गलम् , हरितम्, लोहितम्, च, एपः, पन्थाः, ब्रह्मणा, ह, अनुवित्तः, तेन, एति, अलावित, पुण्यकृत, तेजसः, च ।। अन्चय-पदार्थ । नम्मिन् उस मोक्षसाधन मार्ग के विषय में 1 + विवाद: विवाद है। + केचित् कोई प्राचार्ग। शुक्लम्-सूर्य के शुक्ल रूप को। श्राहमुक्रिमार्ग कहते हैं। उत-और । + केचित्= कोई। नीलम् सूर्य के नील रूप को। श्राहु-मुक्ति मार्ग