1 वृहदारण्यकोपनिषद् स० कहते हैं । + केचित्-कोई। पिङ्गलम्-सूर्य के पीले रूप को। + आहुः-मुनिमार्ग कहते हैं । + केचित् कोई । हरितम्-सूर्य के हरे रूप को। + आहुः-मुनिमार्ग कहते हैं। च =और। +केचित्-कोई । लोहितम्-सूर्य के लालरूप को। + पाहुः= मुनिमार्ग कहते हैं । एप: यह । पन्था:-मार्ग । ब्रह्मणा =ब्रह्म- वेत्ताओं करके । अनुवित्तः जाना गया है। तेन एव इसी मार्ग करके । पुण्यकृत्-पुण्य करनेवाला । तैजसा तेजस्वीरवरूप । ब्रह्मवित्-ब्रह्मवेत्ता+सूर्यलोकम् पूर्यलोक को। पतिजाता है। भावार्थ। हे जनक ! सूर्य में पांच तत्वों के पांच रंग स्थित हैं, उन रंगों की उपासना प्राचार्यों ने अपने अपने मत के अनुसार की है, किसी आचार्य ने सूर्य के शुक्ल रूप को मुंक्तिमार्ग कहा है, किसी ने सूर्य के नील रूप को मुक्तिमार्ग कहा है, किसी ने सूर्य के पीले रूप को मुक्तिमार्ग कहा है और किसी ने सूर्य के हरे रूप को मुक्तिमार्ग कहा है, किसी ने सूर्य के लाल रूप को मुक्तिमार्ग कहा है, ये कहे हुये मार्ग ब्रह्मवेत्ताओं करके जाने गये हैं, इन्हीं मागे करके पुण्य करनेवाले तेजस्वी ब्रह्मवेत्ता पुरुष सूर्यलोक को जाते हैं ॥६॥ मन्त्रः १० अन्धं तमः प्रविशन्ति येऽविद्यामुपासते । ततो भूय इव ते तमो य उ विद्यायाचे रताः॥ पदच्छेदः। अन्धम्, तमः, प्रविशन्ति, ये, अविद्याम्, उपासते, ततः, भूयः, इव, ते, तमः, ये, उ, विद्यायाम् , रताः ॥
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