पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/५७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अध्याय.४ ब्राह्मण ४ अन्वय-पदार्थ । यमो । अविद्याम् यज्ञादि कर्म । उपासते-करते हैं। + ते= ये। अन्धम् तमः अन्धतम में । प्रविशन्ति-प्रविष्ट होते हैं। .च-ौर । ये-जो । विद्यायाम् उ कर्मविद्या ही में यानी शिल्प, रन शादिक विद्याश्री में। रताः अभिरत हैं। तेन्वे । ततः उस अन्धनम से । भृयः इव-यदे घन । तमः अन्धतम में । प्रविशन्ति-प्रविष्ट होते हैं। भावार्थ । हे राजा जनक ! जो पुरुष अविद्या की उपासना करते हैं वे. श्रन्धतम को प्राप्त होते हैं और जो विद्या की यानी अपरा विद्या की उपासना साहंकार करते हैं वे उससे भी अधिक अन्धतम को प्राप्त होते हैं क्योंकि इस विद्या करके विशेष रागहए में आसक्त होते हैं ॥ १० ॥ मन्त्रः ११ अनन्दानाम ते लोका अन्धेन तमसाहताः। तास्ते प्रत्याभिगच्छन्त्यविद्वाछसोऽवुधो जनाः॥ पदच्छेदः। अनन्दाः, नाम, ते, लोकाः, अन्धेन, तमसा, आवृताः, तान, त, प्रेत्य, अभिगच्छन्ति, अविद्वांसः, अवुधः, जनाः ।। अन्वय-पदार्थ । ते-वे । लोका:लोक । अनन्दाः नाम-अनन्द नाम से प्रसिद्ध है। ये-जो। अन्धेन-महा अन्धकार। तमसान्तम करके । श्रावृता:प्रावृत हैं। तान्-उन्हीं लोकों को।ते-वे। अविद्वांसः साधारण अविद्वान् । अत्रुधः जनाः-अज्ञानी पुरुप । प्रेत्य-मरकर । अभिगच्छन्ति-प्राप्त होते हैं ।