पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/५८

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४२ बृहदारण्यकोपनिषद् स० तस्मात् इसलिये। + तत्-वहाँ के । जनम् लोगों के पास कोई । नन्न । इयात्-जाय । + चम्धौर । अन्तम्-रस दिशा के अन्त को भी । न-न । इयात्-साय च-चौर । इति: ऐसा । नेत्-हर रहे कि । + यदि-प्रगर । + जगम-मैं गया तो। पाप्मानम्-पापरूप । मृत्युम-मृत्यु को। अन्वयानि प्राप्त हूँगा। भावार्थ। हे सौम्य ! वह प्राणदेवता इन वागादि इन्द्रियों के पाप- रूप मृत्यु को पकड़ करके वहाँ ले गया, जहाँ इन दिशाओं का अंत होता है, यानी जहाँ भारतवर्ष देश का अंत है, और वहाँ ही इन देवताओं के पापों को छोड़ दिया है, इन- लिये वहाँ के लोगों के पास कोई न जाये, और उस दिशा के अंत को यानी भारतवर्ष के बाहर न जावे, ऐसा डरता रहे कि अगर मैं भारतवर्ष के बाहर गया तो पापरूप मृत्यु को प्राप्त हो जाऊँगा ॥ १०॥ मन्त्रः ११ सा वा एपा देवतैतासां देवतानां पाप्मानं मृत्युम- पहत्याथैना मृत्युमत्यवहत् ।। पदच्छेदः। सा, वा, एपा, देवता, एतासाम् , देवतानाम् , पाप्मानम् , मृत्युम् , अपहत्य, अथ, एनाः, मृत्युम् , अति, अवहत् ।। अन्वय-पदार्थ । सा चै-वही । एषाभ्यह मुख्य प्राण । देवता-देवता । एतासाम्-इन । देवतानाम्बागादि देवताओं के । पाप्मानम् पापरूप । मृत्युम-मृत्यु को। अपहत्य-उनसे छीनकर । अथ-