अध्याय ४ ब्राह्मण. ५ ५८६ वेद-जानता है । सर्वम्-सव ! तम्-उसको । परादात्- त्याग देते हैं। यः-जो । आत्मनः अपने जीवात्मा से। अन्यत्र-पृथक् । सर्वम्-संघ को । वेद-जानता है । इदम् यह । ब्रह्मब्राह्मण । इदम्-यई । क्षत्रम्-क्षत्रिय । इमे येः। लोकाःम्जोक । इमे ये । देवाः देव । इमे-ये । वेदाः वेद । इमानि-ये । भूतानि-सब प्राणी । इदम् यह । यत् जो कुछ है। अयम् यही । सर्वम् सब । आत्मा “प्रात्मा है। भावार्थ । याज्ञवल्क्य महाराज़ कहते हैं कि, हे प्रिय मैत्राय ! ब्रह्मत्व शक्ति उस पुरुष को त्याग देती है जो ब्रह्मत्व को अपने श्रात्मा से पृथक् जानता है, क्षत्रियत्व शक्ति उस पुरुष को त्याग देती है. जो अपने आत्मा से क्षत्रियत्व को पृथक् समझता है, स्वर्गादिलोक उस पुरुष को त्याग देते हैं जो अपने आत्मा से स्वर्गादिलोकों को पृथक् जानता है, देवता उस पुरुप को त्याग देते जो अपने आत्मा से देवता को पृथक् जानता है, वेद उस पुरुष.को त्याग देते हैं जो वेदों को अपने प्रात्मा से पृथक् जानता है; सब प्राणी उस पुरुष को त्याग देते हैं जो अपने आत्मा से प्राणियों को पृथक् जानता है, सब कोई. उस पुरुष को त्याग देते हैं जो अपने आत्मा से सबको पृथक् :जानता है। यह ब्राह्मण है, ..यह क्षत्रिय है, यह लोक है, यह देवता है, यह बेद है, यह प्राणी है, जो कुछ है वह सब अपना आत्मा है आत्मा. से अतिरिक्त कुछ भी नहीं है ॥ ७ ॥
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