पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/६११

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1 • अध्याय ४ ब्राह्मण ५. . जैसे सब स्पर्शों का एक स्थान त्वचा है, जैसे सब गन्धों का एक स्थान प्राण इन्द्रिय है, जैसे सब स्वादों का एक स्थान जिहा है, जैसे सब रूपों का एक स्थान नेत्र है, जैसे सब शब्दों का एक स्थान श्रोत्र · है, जैसे सब संकल्पों का एक स्थान मन है, जैसे सब विद्याओं का एक स्थान हृदय है, जैसे सब कर्मों का एक स्थान हस्त हैं, जैसे सव आनन्दों का एक स्थान उपस्थ है, जैसे सब विसर्जनों का एक स्थान गुदा हैं, जैसे सब मार्गों का एक स्थान पाद हैं, जैसे सब वेदों का एक स्थान वाणी है, इसी प्रकार यह अपना आत्मा सत्र ज्ञानों का एक स्थान है ॥ १२ ॥ स यथा सैन्धवयनोऽनन्तरोऽवाह्यः कृत्स्नो रसघन एवैवं वा अरेऽयमात्मानन्तरोऽधायः कृत्स्नः प्रज्ञानयन एवैतेभ्यो भूतेभ्यः समुत्थाय तान्येवानुविनश्यतिं. .न प्रेत्य संज्ञास्तीत्यरे व्रवीमीति होवाच याज्ञवल्क्यः॥ पदच्छेदः। सः, यथा, सैन्धवघनः, अनन्तरः, अबाह्यः, कृत्स्नः, रसधनः, एव, एवम्, वा, अरे, :अयम् , आत्मा, अनन्तरः, अबाह्यः, कृत्स्नः, प्रज्ञानघनः, एव, एतेभ्यः, - भूतेभ्यः, समुत्याय, तानि, एव, अनुविनश्यति, न, प्रेत्य, संज्ञा, अस्ति, इति, अरे, ब्रवीमि, इति, ह, उवाच, याज्ञवल्क्यः ॥ अन्वय-पदार्थ। यथा जैसे । सान्त्रह । सैन्धवघना-सैन्धवनोन काढला । अनन्तर:-भीतर । अवाह्या बाहर से । रसघन: रसवाला। . ,