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पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/६१६

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वृहदारण्यकोपनिषद् म० चहाँ। अयम्-यह प्रारमा । केनकिम के । कम-फिमको। पश्येत् देखे । तत्यहाँ । केन-किस करके कम किपको। जिघ्रत्-मूं थे । तत् यहाँ । केन=किम कामे । कम्-किया। रसयते-स्वाद लेथे । तत्रहीं । फेनकिम करके । कम् किसको । अभिवदेत्-कहे । नत् । केन% र कर। कम्-किसको । णुयात्-पुन । नन्न-किप करके। कम्-किसको । मन्बीत-माने । तत् । नकिम करके। कम्-किसको । स्पृशेत्र करे। नni1 फेन-किस करके । कम्-किसको । विजानीयात्माने म फर। + पुरुषा-पुरुष । इदम्-इम । सर्वम्य विज्ञानीया आनता है । तम्-उसको । कन-किस कर ! विज्ञानीयात् कोई जाने । साम्यही । एपड़ी। यात्मामा । नति- नेति । नेति नेति । इति करके । श्रगृा: क्योंफि । + सम्बदा नहीं । गृपने किया मना है। अशीर्यः मोगतारहित होकि । सान%3D नहीं । शीर्यतेजीणं किया जा मन्ना है। अमर-15 प्रमा है। हिक्योंकि । सायद । न सभ्यते-किमी मामा. नही है। असिता यह थय है। हि-पाकिसन व्यथते- पीड़ित नहीं होता है। चशेर । नन । रिप्यनिम्न होना है। अरे हे मैत्रेयि ! विनातारम् उस ज्ञानस्य प्रारमा को। केन-किस के द्वारा । विजानायात्मकोई जाने । मैयि: हे मैत्रेयि ! तू । इति-इस प्रकार । उक्तानुशासगाउपदेश कीगई । असिम्है। अरे-ई मैग्रेषितावत् मनुमना दी। अमृतत्वम् मुकि है । इति हप्पा । उक्यामर । यात्र- वस्या याज्ञस्य | चिजहार-बार करते मगे यानी चले गये।