अध्याय ५ ब्राह्मण ७ ६२५ - है, यही सत्र का ईश्वर है, सब का अधिपति है, सब का पालन करनेवाला है, सब को अपनी आज्ञा में नियमबद्ध रखता है, और जो कुछ स्थावर जङ्गम संसार भासता है उन सब का वह कर्ता, धर्ती और हर्ता है ॥१॥ इति षष्ठं ब्राह्मणम् ॥ ६ ॥ अथ सप्तमं ब्राह्मणम् । मन्त्र: १ विद्युब्रह्मेत्याहुर्विदानाद्विद्युद्विद्यत्येनं पाप्मनो य एवं वेद विद्युब्रह्मेति विद्युद्धय व ब्रह्म । इति सप्तमं ब्राह्मणम् ॥ ७॥ पदच्छेदः। विद्युत्, ब्रह्म, इति, आहुः, विदानात् , विद्युत् , विद्यति, एनम्, पाप्मनः, यः, एवम् , वेद, विद्युत् , ब्रह्म, इति, विद्युत्, हि, एव, ब्रह्म ॥ अन्वय-पदार्थ। विदानात् पाप अथवा अन्धकार के नाश कर डालने के कारंण । ब्रह्म-प्रय । विद्युत्-विद्युत् है । इति ऐसा । पाहुः= लोग कहते हैं । विद्युत् विद्युन् । ब्रह्मन्ब्रह्म है । इति एवम् ऐसा इस प्रकार । यःो । वेद-जानता है । + सः वह । एनम्-उसके यानी अपने । पाप्मन-पापों को । विद्यति नाश कर देता है। हिक्योंकि । एव-निश्चय करके । ब्रह्मन्ब्रह्म। चिद्युत्-विद्युत् है यानी पापविदारक है। ४०
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