अध्याय ५ ब्राह्मण ६, ६२७ चार । स्तना-स्तन । स्वाहाकारः स्वाहाकार । वपट्कार:- वपट्कार । हन्तकार: हन्तकार । स्वधाकारः स्वधाकार हैं। तस्याः-उस धेनु के । द्वौ-दो । स्तनौ-स्तन । स्वाहाकारम्- स्वाहाकार । च-और । वपट्कारम् वपट कार के आश्रय । देवा देवता । उपजीवन्ति जीते हैं । मनुष्याः मनुष्य । हन्तकारम् हन्तकार स्तन के श्राश्रय । + उपजीवन्ति-जीते हैं। च-और । पितरः पितर लोग । स्वधाकारम् स्वधाकार स्तन के माश्रय । उपजीवन्ति-जीते हैं। तस्याउस गौ का। ऋपभः बैल यानी स्वामी । प्राणप्राण है ।+च-और । वत्सा-बच्चा । मन:-मन है। भावार्थ। हे शिष्य ! सत्यब्रह्म की प्राप्ति का उपाय दिखलाते हैं, सो सावधान होकर सुनो, पुरुप वेदवाणी की कामधेनु गौके समान उपासना करै, जैसे गौके चार स्तन होते हैं वैसे ही वेदरूपी गौ के चार स्तन स्वाहाकार, वषट्कार, इंतकार और स्वधा- कार हैं, उनमें से दो स्तन स्वाहाकार और वषट्कार के आश्रय देवता जीते हैं, मनुष्य हंतकार के श्राश्रय जीते हैं, और पितरलोग स्वधाकार स्तन के आश्रय जीते हैं, ऐसे गौ का पति प्राण है, और बच्चा मन है ॥१॥ इति अष्टमं ब्राह्मणम् ॥ ८ ॥ अथ नवमं ब्राह्मणम्। मन्त्रः १ अयमग्निवैश्वानरो योऽयमन्तःपुरुपे येनेदमन्नं पच्यते
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