पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/६५३

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अध्याय ५ ब्राह्मण १३ वीर: वीर । + पुत्रः पुत्र । उत्तिष्ठति उत्पन्न होता है । यः जो । एचम्-इस प्रकार इसको । हस्पष्ट । वेद मानता है। सावह । उक्थस्य-उक्थ के । सायुज्यम्-सायुज्यता को । +च-और । सलोकताम्-सालोक्यता को । जयति प्राप्त होता है। भावार्थ । हे शिष्य ! प्राण ही उक्थ है, उक्थशब्द उत् और स्था से बना है, जिसका अर्थ उठना है, यज्ञ में उक्थ शस्त्र पढ़ने से ऋत्विज उठ बैठते हैं, और अपना अपना कार्य करने लगते हैं, इसी प्रकार शरीर में प्राण जवतक चला करता है तबतक ऋत्विज रूप सब इन्द्रियां अपना अपना कार्य किया करती हैं, यह उक्थ और प्राण की सादृश्यता है, यानी जैसे प्राण के सहारे से सव इन्द्रियां अथवा प्राणीमात्र अपना अपना कार्य करते हैं तैसे ही उक्थ शस्त्र के यज्ञ में पढ़ने से सव ऋत्विज् उठकर अपना अपना कार्य करने लगते हैं, इस प्रकार उक्थोपासना कर्तव्य है, क्योंकि प्राण ही सव को उठाता है, जो उक्थ का अर्थ ऐसा समझता है, वह वीर पुत्र को उत्पन्न करता है, इस कारण उक्थ प्राण कहा गया है, और जो इसको जानता है, वह उक्थ सायुज्यता और सालोक्यता को पाता है ॥ १ ॥ मन्त्रः २ यजुः प्राणो चै यजुः पाणे हीमानि सर्वाणि भूतानि युज्यन्ते युज्यन्ते हास्मै सर्वाणि भूतानि श्रेष्ठयाय यजुषः सायुज्य सलोकतां जयति य एवं वेद ॥