पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/६६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बृहदारण्यकोपनिषद् स० भावार्थ। अचः में दो अक्षर ऋ, च, यजपि में तीन अक्षर य, पि, सामानि में तीन अक्षर सा, मा, नि, इस प्रकार ये पाठ अक्षर बरावर हैं गायत्री के दूसरे पाद श्राठ अनर वाल "भ, !, दे, व, स्य, धी, म, हि" के और इसी कारण दोनों की समता है, यानी गायत्री का दूसरा पाद तीनों वेद के बराबर है, अब श्रागे गायत्री के दृमरे पाद उपासना का फल दिखलाते हैं, जो उपासक गायत्री के रस एक पाद को ऐसा समझकर उपासना करता है तो वह उन सब वस्तुथों को पाता है जो तीन वेदों की उपासना काक पाया जाता है ।। २॥ मन्त्रः प्राणोऽपानो व्यान इत्यष्टावन्नराएयष्टानरहवा एक गायत्र्य पदमेतदु हैवास्या एतत्स यावदिदं प्राणि तावद्ध जयति योऽस्या एनदेवं पदं वेदाथास्य एतदेव तुरीयं दर्शतं पदं परोरजा य एप तपनि य? चतुर्थ तत्तुरी दर्शतं पदमिति ददृश इव हाप परोरजा इति सर्वमु ह्य वैप रज उपर्युपरि तपत्येव हैव श्रिया यशसा तपति योऽस्या एतदेवं पदं वेद ।। पदच्छेदः। प्राणः, अपानः, व्यानः, इति, अष्टी, अक्षराणि, अष्टाक्षरम् , ह, वा, एकम् , गाय, पदम्, एतत् , उ, ह, एव, अस्याः, एतत्, सः, यावत्, इदम् , प्राणि, तावत,