पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/६६६

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इसलिये प्राण ६५२ बृहदारण्यकोपनिषद् स० देखनेवाले का वाक्य सत्य समझा जायगा, सुननेवाले का वाक्य सच्चा नहीं समझा जायगा, इस कारण 'सत्य चक्षु बिषे स्थित है, सोई सत्य बल बिषे स्थित है, क्योंकि आंख से देखी हुई वस्तु का प्रमाण बलो होता है, क्योंकि प्राण ही बल है और उसी करके चक्ष विषयों को देखती है, में ही सत्य स्थित है, और यही कारण है कि प्राणको सत्य से अधिक बलवान् माना है, और प्राण बलवान् होने के कारण यह गायत्री भी बलवान् है, क्योंकि प्राण के आश्रय है, और इसलिये यह गायत्री गायत्री जपने वालों की रक्षा करती है, और गायत्री के गान करने- वाले वागादि इन्द्रियां है, इसलिये उनकी भी रक्षा गायत्री करता है, और जिस कारण यह गायत्री जपने वालों की रक्षा करती है, तिसी कारण इसका नाम गायत्री पड़ा है ॥ ४ ॥ मन्त्र: ५ ताछ हैतामेके सावित्रीमनुष्टुभमन्वाहुर्वागनुष्टुवेतद्वा- चमनुव्रम इति न तथा कुर्याद्वायत्रीमेवळ सावित्रीमनु- व्यायदि ह वा अप्येवंविरहिव प्रतिगृह्णाति न हैव तद्वायच्या एकं चन पदं प्रति ।। पदच्छेदः। ताम् , ह, एताम् , एके, सावित्रीम् , अनुष्टुभम् , अन्दाहुः, वाक्, अनुष्टुब्, एतत् , वाचम् , अनुब्रूमः, इति, न, तथा, कुर्यात्, गायत्रीम्, एवं, सावित्रीम्, अनुब्रूयात् , यदि, ह, !