अध्याय ६ ब्राह्मण... एवम् कहे हुये प्रकार । वेद-आनता है । + सा वह । येषाम् =जिस किसी लोगों के मध्य में । वुभूषति ज्येष्ठ श्रेष्ठ होने की इच्छा करता है । सा=वह । + तेषाम् उनमें । भवति-ज्येष्ठ श्रेष्ट हो जाता है। भावार्थ। जो कोई पुरुष ज्येष्ठ और श्रेष्ठ को जानता है, यानी उपासना करता है, वह भी निश्चय करके अपने भाई. वन्धुओं में ज्येष्ठ और श्रेष्ठ होता है, शरीरस्थ प्राण अवश्य ही इन्द्रियों विषे ज्येष्ठ और श्रेष्ठ है, इस कारण प्राण का उपासक अपनी जाति में ज्येष्ठ और श्रेष्ठ होता है, और इनके सिवाय जो पुरुष कहे हुये प्रकार प्राण की उपासना करता है वह जिस किसी लोगों में ज्येष्ठ और श्रेष्ठ होने की इच्छा करता है, वह उनके मध्य में भी ज्येष्ठ श्रेष्ठ होता है॥१॥ मन्त्र: २ यो ह चे वसिष्ठां वेद वसिष्ठः स्वानां भवति वाग् वै वसिष्ठा वसिष्ठः स्वानां भवत्यपि च येषां बुभूपति य एवं वेद ॥ पदच्छेदः। यः, ह, वे, वसिष्ठा, वेद, वसिष्ठः, स्वानाम् , भवति, वाकु, वै, वसिष्ठा, वसिष्ठः, स्वानाम् , भवति, अपि, च, येषाम् , बुभूषति, यः, एवम् , वेद ॥ अन्वय-पदार्थ। यः जो पुरुप । वसिष्ठाम्-रहनेवालों में से अतिश्रेष्ठ को । वेद-जानता है । सम् वह । स्वानाम्-अपने सम्बन्धियों के चीच में । वसिष्ठः अतिश्रेष्ठ । भवति होता है। वाक्-वाणी
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