पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/७०३

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- अध्याय ६ ब्राह्मण-२. प्रतिपद्यन्ते लोक प्राप्त होते हैं । वेत्थ-तू जानता है। + अत्र-इस विषय में । अपि वा-क्या । त्वम्-तुमने - ! ऋषे ऋषि के । वचः-वाश्य को । न-नहीं । श्रुतम्- सुना हुआ है । अहम् मैं । इति-ऐसे । वेदो । सृती- मार्गों को । प्रणवम्-सुन चुका हूं।+ एका-एक मार्ग । पितृणाम् पितरों का । + अस्ति-है यानी उस मार्ग से पितरलोक को जाते हैं। च-और । द्वितीया-दूसरी मार्ग । देवानाम्-देवों का । + अस्ति है यानी उस मार्ग से देवलोक को जाते हैं । उत-परन्तु । + इमे-ये । सृती दोनों मार्ग । मर्त्यानाम्-जीवों के हैं । ताभ्याम् इन्हीं करके । इदम्-यह । विश्वम्-सारा संसार । समेति जाता है ।+ ते थे। द्वेदोनों । सृती-मार्ग । मातरम्-माता यानी पृथ्वी । पितरम्-पिता यानी स्वर्ग । यदन्तरा-लोक के मध्य में है। इति इस पर । श्वेतकेतु:श्वेतकेतु ने । ह स्पष्ट । उवाच-कहा । अहम् मैं । अतः इन प्रश्नों में से । एकम् चन-एक को भी। न-नहीं । वेद-जानता हूँ। भावार्थ । हे सौम्य ! राजा प्रवाहण श्वेतकेतु से पूछते हैं कि, हे कुमार ! जहां से प्रजा मरकर अपने कर्मानुसार भिन्न भिन्न लोकों को जाती है क्या तू जानता है ? श्वेतकेतु ने उत्तर दिया मैं नहीं जानता हूं फिर राजा प्रवाहण पूछते हैं कि जिस तरह से ये जीव इस लोक को फिर लौट आते हैं क्या तू जानता है ? श्वेतकेतु ने उत्तर दिया मैं नहीं जानता हूं, फिर राजा पूछते हैं कि हे कुमार ! जरा मरण दुःखों से मर कर परलोक को जीव जाते हैं और वहां रहते हैं तो वह ! !