। ६८८ बृहदारण्यकोपनिषद् स० न इति-नहीं ऐसा । न इति नहीं ऐसा । + बेमिमानता मैं । + पुना-फिर । + प्रवाहणः प्रयाण राजा ! + उवाच% पूछता भया कि । यथा क्यों । प्रजाः ये प्रजा । इमम्-इम । लोकम् लोक को । पुनः फिर । श्रापद्यन्त इति लोट पानी हैं । उ-क्या । वेत्थ-तू जानता है। ह-तय । + श्वेतकेतुः%3 D श्वेतकेतु । ह-स्पष्ट । + उवाच बोला कि । पत्र न नहीं। इति=ऐसा । + वेमि-जानता हूँ मैं। पुनःपि.र । + प्रवा- हण: प्रवाहण राजा । + प्रपच्छ-पलता मया कि । यथा-क्या। न-नहीं । असौवह । लोकः लोक । यद्दभिःग्रहुतमी । पुनः पुना-बार बार । एवम्-इस प्रकार । प्रयनि-मरनेवाली प्रजा करके । संपूर्यते पूर्ण होता है । उ-क्या । वेत्य- जानना है ? + श्वेतकेतुःश्वेत केतु ने।ह स्पष्ट । उवाच-सर दिया कि । इति-ऐसा । न नहीं । + बेमिसानना मैं + प्रवा- हण:-प्रवाहण राजा ने । पुनः फिर । + उवाच-पृहा कि ! यतिथ्याम्-कितनी । पाहुत्याम्-थाहुतियों के । हुतायाम् देने पर । श्रापः जलरूपी जीव । पुरुषवाच:-पुरपयाचक । भृत्या- होकर । + च-और । समुत्थाय-उठकर । वदन्ति-योलने लगता है। उम्क्या। इति-ऐसा । वेत्थ-तू मानता है। इतिइस पर । + श्वेतकेतुम्-श्वेतकेतु । उवाच-बोला कि । ह एव-निश्चय करके । इति=ऐसा । न-नहीं । + वेनि जानता हूँ मैं । + प्रवाहणः-प्रवाहण राजा I+ पप्रच्छ-फिर पछता भया कि । उन्क्या। देवयानस्य-देवयान । पथ:-मार्ग के । प्रतिपदम् साधन को । वा-अथवा । पितृयानस्य-पितृयान । पथः मार्ग के । + प्रतिपदम् साधन को । यत्-जिसको । कृत्वा ग्रहण करके । देवयानम् देवयान । पन्थानम्-मार्ग की।वाअथवा। पितृयाणम् पितृयान । पन्थानम् मार्ग को।
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