बृहदारण्यकोपनिषद् स० भावार्थ। हे सौम्य ! उद्दालक ऋषि पुत्र के वचन को सुनकर कहने लगे कि हे पुत्र ! जिम प्रकार और जो कुछ ज्ञान में जानता था उन सबको तुमसे मैं कह चुका हूं तुमम बढ़कर मुझको कौन प्रिय है जिसके लिये में विद्या को छिपा रखता। राजा ने जो जो प्रश्न तुमसे पूढे हैं और तुमने मुझसे कहा है उन्हें मैं नहीं जानता हूं । यदि तुम उनको जानना चाहते हो तो मेरे साथ चलो, राजा के निकट ब्रह्मचर्य व्रत धारण करते हुये वास करेंगे और उसमे विद्या को ग्रहण करेंगे। लड़के ने कहा आप ही जाइये, मैं तो राजा के निकल नहीं जाऊंगा, तब आरुणि का पुत्र गौनम यानी उद्दालक जीवल के पुत्र प्रवाहण राजा की सभा में पहुँचा। राजा ने उसको अतिथिसत्कार करके श्रासन दिया और फिर नौकरों से जल मँगवाकर ऋषि को अर्घ दिया और देकर पूछा कि हे भगवन् ! आप जो वर चाहें माँग लें. मैं देने को तैयार हूं ॥ ४ ॥ मन्त्रः ५ स होवाच प्रतिज्ञातो म एप बरो यां तु कुमारस्यान्ते वाचमभापथास्तां मे बहीति ॥ पदच्छेदः। सः, ह, उवाच, प्रतिज्ञातः, मे, एपः, वरः, याम्, तु, कुमारस्य, अन्ते, वाचम्, अभापयाः, ताम्, मे, ब्रूहि, इति॥ अन्वय-पदार्थ । ह-तव । सम्म्वाह गौतम ! + राजानम्-राजा से । उवाच% . 10
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